त्रिफला के सेवन से अपने शरीर का कायाकल्प कर जीवन भर स्वस्थ रहा जा सकता है
आयुर्वेद की महान देन त्रिफला से हमारे देश का आम व्यक्ति परिचित है व सभी
ने कभी न कभी कब्ज दूर करने के लिए इसका सेवन भी जरुर किया होगा | पर बहुत कम लोग जानते है इस त्रिफला चूर्ण जिसे आयुर्वेद रसायन भी मानता
है से अपने कमजोर शरीर का कायाकल्प किया जा सकता है | बस
जरुरत है तो इसके नियमित सेवन करने की | क्योंकि त्रिफला का
वर्षों तक नियमित सेवन ही आपके शरीर का कायाकल्प कर सकता है |
त्रिफला
तीन श्रेष्ठ औषधियों हरड, बहेडा व आंवला के पिसे मिश्रण
से बने चूर्ण को कहते है।जो की मानव-जाति को हमारी प्रकृति का एक अनमोल उपहार
हैत्रिफला सर्व रोगनाशक रोग प्रतिरोधक और आरोग्य प्रदान करने वाली औषधि है।
त्रिफला से कायाकल्प होता है त्रिफला एक श्रेष्ठ रसायन, एन्टिबायोटिक
वऐन्टिसेप्टिक है इसे आयुर्वेद का पेन्सिलिन भी कहा जाता है। त्रिफला का प्रयोग
शरीर में वात पित्त और कफ़ का संतुलन बनाए रखता है।
यह
रोज़मर्रा की आम बीमारियों के लिए बहुत प्रभावकारी औषधि है सिर के रोग, चर्म रोग, रक्त दोष, मूत्र रोग
तथा पाचन संस्थान में तो यह रामबाण है। नेत्र ज्योति वर्धक, मल-शोधक,जठराग्नि-प्रदीपक, बुद्धि को कुशाग्र करने वाला व
शरीर का शोधन करने वाला एक उच्च कोटि का रसायन है। आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि
त्रिफला पर भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर, ट्राम्बेा,गुरू नानक देव विश्व विद्यालय, अमृतसर और जवाहर लाल
नेहरू विश्वेविद्यालय में रिसर्च करनें के पश्चा त यह निष्क्र्ष निकाला गया कि
त्रिफला कैंसर के सेलों को बढ़नें से रोकता है।
हरड
:-
हरड
को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता
है। हरड बुद्धि को बढाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली,पीलिया ,शोध ,मूत्राघात,दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला,
सिर और पेट के रोग, कर्णरोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह
पेट में जाकर माँ की तरह से देख भाल और रक्षा करती है। भूनी हुई हरड के सेवन से
पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड को चबाकर खाने से अग्नि बढाती है। पीसकर सेवन करने
से मल को बाहर निकालती है। जल में पका कर उपयोग से दस्त, नमक
के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के
साथ सेवन करने से वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड को वर्षा के दिनों में सेंधा नमक
के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत
में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत
में शहद और ग्रीष्म में गुड के साथ हरड का प्रयोग करना हितकारी होता है। भूनी हुई
हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड
पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखे। पेट की गड़बडी
लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें । गैस, कब्ज़, शरीर टूटना, वायु-आम के
सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा । त्रिफला बनाने के लिए तीन मुख्य घटक हरड,
बहेड़ा व आंवला है इसे बनाने में अनुपात को लेकर अलग अलग ओषधि
विशेषज्ञों की अलग अलग राय पाई गयी है|
बहेडा
:-
बहेडा
वात,और कफ को शांत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है। यह खाने में
गरम है,लगाने में ठण्डा व रूखा है, सर्दी,प्यास,वात , खांसी व कफ को
शांत करता है यह रक्त, रस, मांस ,केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्धक है। बहेडा
मन्दाग्नि ,प्यास, वमन कृमी रोग नेत्र
दोष और स्वर दोष को दूर करता है बहेडा न मिले तो छोटी हरड का प्रयोग करते है|
आंवला
:-
आंवला
मधुर शीतल तथा रूखा है वात पित्त और कफ रोग को दूर करता है। इसलिए इसे त्रिदोषक भी
कहा जाता है आंवला के अनगिनत फायदे हैं। नियमित आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था
जल्दी से नहीं आती।आंवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है,इसका विटामिन किसी सी रूप (कच्चा उबला या सुखा) में नष्ट नहीं होता,
बल्कि सूखे आंवले में ताजे आंवले से ज्यादा विटामिन सी होता है।
अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। चर्बी, पसीना,
कपफ, गीलापन और पित्तरोग आदि को नष्ट कर देता
है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढता है लेकिन आँवला और अनार पित्तनाशक है।
आँवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक,
हृदय को बल देने वाला नेत्र ज्योति को बढाने वाला होता है।
त्रिफला
के ऊपर कुछ विशेषज्ञों की राय :-
1. तीनो घटक (यानी के हरड, बहेड़ा व आंवला) सामान
अनुपात में होने चाहिए।
2. कुछ विशेषज्ञों कि राय है की यह अनुपात एक, दो तीन
का होना चाहिए ।
3. कुछ विशेषज्ञों कि राय में यह अनुपात एक, दो चार का
होना उत्तम है
4. और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुपात बीमारी की गंभीरता के अनुसार
अलग-अलग मात्रा में होना चाहिए ।एक आम स्वस्थ व्यक्ति के लिए यह अनुपात एक,
दो और तीन (हरड, बहेडा व आंवला) संतुलित और
ज्यादा सुरक्षित है। जिसे सालों साल सुबह या शाम एक एक चम्मच पानी या दूध के साथ
लिया जा सकता है। सुबह के वक्त त्रिफला लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक
(पेट साफ़ करने वाला) होता है।
ऋतु
के अनुसार त्रिफला की सेवन विधि :-
1.शिशिर ऋतु में ( 14 जनवरी से 13 मार्च) 5 ग्राम त्रिफला को आठवां भाग छोटी पीपल का
चूर्ण मिलाकर सेवन करें।
2.बसंत ऋतु में (14 मार्च से 13 मई)
5 ग्राम त्रिफला को बराबर का शहद मिलाकर सेवन करें।
3.ग्रीष्म ऋतु में (14 मई से 13 जुलाई
) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग गुड़ मिलाकर सेवन करें।
4.वर्षा ऋतु में (14 जुलाई से 13 सितम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सैंधा नमक
मिलाकर सेवन करें।
5.शरद ऋतु में(14 सितम्बर से 13 नवम्बर)
5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग देशी खांड/शक्कर मिलाकर सेवन
करें। 6.हेमंत ऋतु में (14 नवम्बर से 13
जनवरी) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सौंठ का
चूर्ण मिलाकर सेवन करें।
जाने
ओषधि के रूप में त्रिफला का प्रयोग कैसे करें :-
1. रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला
चुर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है।
2. त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें
इससे कब्ज दूर होता है।
3. इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।
4. सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के
बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी ले। शाम को उसी
त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस
पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो
जायेंगे।
5. शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर
इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।
6. एक चम्मच बारीख त्रिफला चूर्ण, गाय का घी10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने
से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि
दोष आदि नेत्ररोग दूर होते है। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।
7. त्रिफला के चूर्ण को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर
शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो
जाते है।
8. त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।
9. चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली,
फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए।
10.
एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी मे दो- तीन घंटे के लिए
भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल
कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी
करें इससे मुँह आने की बीमारी, मुहं के छाले ठीक होंगे,
अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी ।
11.
त्रिफला, हल्दी, चिरायता,
नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो
पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या
शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है।
12.
त्रिफला एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इस का काढा बनाकर
घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है। 13. त्रिफला पाचन और भूख
को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।
14.
मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर
ले।त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी
कम होती है।
15.
त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत
लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।
16.
त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने
से राहत मिलती है।
17.
5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते
है।
18.
5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से
कामला रोग मिट जाता है।
19.
टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।
20.
त्रिफला दुर्बलता का नास करता है और स्मृति को बढाता है। दुर्बलता
का नास करने के लिए हरड़, बहेडा, आँवला,
घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।
21.
त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में
मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के
साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफे दूर होती है
इसे महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।
22.
त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिला कर जो
रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक,
इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष,
रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद,
काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।
23.
डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।
24.
दो माह तक सेवन करने से चश्मा भी उतर जाता है।
विधिः-
500
ग्राम त्रिफला चूर्ण, 500 ग्राम देसी गाय का
घी व 250 ग्राम शुद्ध शहद मिलाकर शरदपूर्णिमा की रात को
चाँदी के पात्र में पतले सफेद वस्त्र से ढँक कर रात भर चाँदनी में रखें। दूसरे दिन
सुबह इस मिश्रण को काँच अथवा चीनी के पात्र में भर लें।
सेवन-विधिः-
बड़े
व्यक्ति10
ग्राम छोटे बच्चे 5 ग्राम मिश्रण सुबह-शाम
गुनगुने पानी के साथ लें दिन में केवल एक बार सात्त्विक, सुपाच्य
भोजन करें। इन दिनों में भोजन में सेंधा नमक का ही उपयोग करे। सुबह शाम गाय का दूध
ले सकते हैं।सुपाच्य भोजन दूध दलिया लेना उत्तम है.
मात्राः-
4 से 5 ग्राम तक त्रिफला चूर्ण सुबह के वक्त लेना पोषक
होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है। सुबह खाली पेट गुनगुने
पानी के साथ इसका सेवन करें तथा एक घंटे बाद तक पानी के अलावा कुछ ना खाएं और इस
नियम का पालन कठोरता से करें ।
सावधानीः-
1.दूध
व त्रिफला के सेवन के बीच में दो ढाई घंटे का अंतर हो और कमजोर व्यक्ति तथा
गर्भवती स्त्री को बुखार में त्रिफला नहीं खाना चाहिए।
2.घी
और शहद कभी भी सामान मात्रा में नहीं लेना चाहिए यह खतरनाक जहर होता है ।
3.त्रिफला
चूर्णके सेवन के एक घंटे बाद तक चाय-दूध कोफ़ी आदि कुछ भी नहीं लेना चाहिये।
4.त्रिफला
चूर्ण हमेशा ताजा खरीद कर घर पर ही सीमित मात्रा में (जो लगभग तीन चार माह में
समाप्त हो जाये ) पीसकर तैयार करें व सीलन से बचा कर रखे और इसका सेवन कर पुनः नया
चूर्ण बना लें।
त्रिफला
से कायाकल्प :-
कायाकल्प
हेतु निम्बू लहसुन ,भिलावा,अदरक
आदि भी है। लेकिन त्रिफला चूर्ण जितना निरापद और बढ़िया दूसरा कुछ नहीं
है।आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला के नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है।
मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है, देखे कैसे ?
1. एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।
2. दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता हैं।
3. तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ जाती है।
4. चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है ।
5. पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती
है।
6. छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।
7. सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफ़ेद से काले हो जाते हैं।
8. आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वृद्धाव्स्था से पुन: योवन लोट आता है।
9. नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और
सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने लगती हैं।
10.
दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में
सरस्वती का वास हो जाता है।
11.
ग्यारह वर्ष तक नियमित सेवन करने से वचन सिद्धि प्राप्त हो जाती है
अर्थात व्यक्ति जो भी बोले सत्य हो जाती है।
त्रिफला
लेने का सही नियम –
1.सुबह
अगर हम त्रिफला लेते हैं तो उसको हम "पोषक " कहते हैं |क्योंकि सुबह त्रिफला लेने से त्रिफला शरीर को पोषण देता है जैसे शरीर में
vitamins ,iron, calcium, micronutrients
की कमी को पूरा करता है एक स्वस्थ व्यक्ति को सुबह त्रिफला खाना
चाहिए |
2.सुबह
जो त्रिफला खाएं हमेशा गुड के साथ खाएं |
3.रात
में जब त्रिफला लेते हैं उसे "रेचक " कहते है क्योंकि रात में त्रिफला
लेने से पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि )का निवारण होता है |
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