20 popular medicinal plants you must know about and You Can Use to Benefit Your Health : 20 साधारण पौधे, जो कई जघन्य रोगों में करते हैं संजीवनी जैसा काम |
20 popular medicinal plants Can Use to Benefit Your Health
पौधों और तमाम तरह की
जड़ी बूटियों को आदिवासी पूजा पाठ में इस्तेमाल करते हैं। ग्रामीण अंचलों में इन्ही
सब जड़ी बूटियों से रोगो का उपचार भी किया जाता है। आदिवासी जड़ी बूटियों के
इस्तेमाल से पहले इनकी पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे जड़ी-बूटियों का असर
दो गुणा हो जाता है। इन जड़ी-बूटियों और उनके गुणों की पैरवी और पुष्टी आधुनिक
विज्ञान भी कर चुका है। कहते हैं न छोटी-छोटी बातों पर अमल करके हम बहुत लाभ उठा
सकते हैं। इन्हीं बातों को हम बचपन से ही अपने बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं लेकिन
आज की भागती-दौड़ती जिंदगी में इन बातों पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता। तो चलिए
इन्हीं बातों की ओर हम आपका ध्यान खींचने का प्रयास करते हैं ताकि आप भी इन घरेलू
नुस्खों से बड़ी राहत ले सकें।
1. गिलोय :
गिलोय एक ऐसी लता है जो भारत में सवर्त्र
पैदा होती है। नीम के पेड़ पर चढ़ी गिलोय औषधि के रूप में प्राप्त करने में बेहद
प्रभाव शाली है। अमृत तुल्य उपयोगी होने के कारण इसे आयुर्वेद में अमृता नाम दिया
गया है। ऊंगली जैसी मोटी धूसर रंग की अत्यधिक पुरानी लता औषधि के रूप में प्रयोग
होती है। गिलोय औषधीय गुणों से भरपूर है। गिलोय 5 अंगुल लम्बा टुकड़ा और 15
कालीमिर्च को मिलाकर कुटकर 250 मिलीलीटर पानी में डालकर उबाल लें। जब यह 58 ग्राम
बच जाए तो इसका सेवन करें इससे मलेरिया बुखार की अवस्था में लाभ मिलेगा। 6 ग्राम
गिलोय का रस, 2 ग्राम इलायची और 1 ग्राम की मात्रा में
वंशलोचन शहद में मिलाकर खाने से क्षय और श्वास-रोग ठीक हो जाता है। गिलोय की
विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करें –
2. हरसिंगार :
पारिजात / हरसिंगार का वृक्ष बड़ा ही
सुन्दर होता है, जिस पर आकर्षक व सुगन्धित फूल लगते हैं।
इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग विविध प्रकार की औषधि आदि
के रूप में भी किया जाता है। यह सारे भारत में पैदा होता है। यह माना जाता है कि
पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है| हारसिंगार
बुखार को खत्म करता है। यह कडुवा होता है। शरीर में वीर्य की मात्रा को बढ़ाता है।
इसकी छाल को अगर पान के साथ खाये तो खांसी दूर हो जाती है। इसके पत्ते दाद,
झांई और छीप को खत्म करते हैं। इसके फूल ठण्डे दिमाग वालों को शक्ति
देता है और गर्मी को कम करता है। हारसिंगार की जड़ व गोंद भी वीर्य को बढ़ाती है।
हरसिंगार की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक
करें –
3. कपास :
कपास
की खेती भारत में प्राचीन समय से होती आ रही है। कपास हल्का, मीठा एवं वात (गैस)
को नष्ट करने वाला होता है। इसके पत्ते कान के दर्द, कान में
आवाज सुनाई देना, कान का बहना, बहरापन
आदि को दूर करता है। इसका प्रयोग मूत्र रोगों में भी किया जाता है। कपास तीन
प्रकार के होते हैं। कपास स्तनों में दूध बढ़ाने वाला, बल
पैदा करने वाला, पित्त, कफ, जलन, भ्रम, भ्रान्ति और बेहोशी
आदि को दूर करने वाला होता है। कपास का गूदा 24 ग्राम, अमलताश
का गूदा लगभग 30 ग्राम, सौंफ, तुख्म
गाजर, सोया, गुलाब फशा 10-10 ग्राम और
पुराना गुड़ 30 ग्राम। इन सभी को 750 मिलीलीटर पानी के साथ आग पर पकाएं। जब यह
पकते-पकते 250 मिलीलीटर बच जाए तो इसे छानकर पीएं। इससे माहवारी खुलकर आने लगती
है। यह गर्भवती स्त्री को नहीं पिलाना चाहिए क्योंकि इससे गर्भपात हो सकता है।
इसके सेवन से मासिकधर्म का रुक-रुककर आना या देर से आना आदि रोग ठीक होता है। इसे
लगातार 3 दिनों तक पीने से मासिकधर्म नियमित और निश्चित समय पर आने लगता है। कपास
की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करें –
4. लटजीरा
:
अपामार्ग एक औषधीय वनस्पति है। इसका वैज्ञानिक नाम 'अचिरांथिस अस्पेरा' (ACHYRANTHES ASPERA) है। हिन्दी
में इसे 'चिरचिटा', 'लटजीरा' 'चिरचिरा ' आदि नामों से जाना जाता है। अपामार्ग एक
सर्वविदित क्षुपजातीय औषधि है। वर्षा के साथ ही यह अंकुरित होती है, ऋतु के अंत तक बढ़ती है तथा शीत ऋतु में पुष्प फलों से शोभित होती है।
ग्रीष्म ऋतु की गर्मी में परिपक्व होकर फल शुष्क हो जाते हैं। इसके पुष्प हरी
गुलाबी आभा युक्त तथा बीज चावल सदृश होते हैं, जिन्हें ताण्डूल
कहते हैं। इसे अपामार्ग भी कहा जाता है। इसके सूखे बीजों को वजन कम करने के लिए
कारगर माना जाता है। इसके तने से दातून करने से दांत मजबूत हो जाते हैं। लटजीरा की
विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करें –
5. तुलसी :
तुलसी का पौधा यूं ही हर घर-आंगन की शोभा नहीं बनता। घरों तथा
मंदिरों में तो इसका पौधा अनिवार्य माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से तो इसकी
उपयोगिता है ही, स्वास्थ्य रक्षक के रूप में भी यह
महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी गंध युक्त हवा जहां-जहां जाती है, वहां का वायुमण्डल शुद्ध हो जाता है। इसे दूषित पानी एवं गंदगी से बचाना
जरूरी होता है। धार्मिक दृष्टि से तुलसी पर पानी चढ़ाना नित्य नेम का हिस्सा माना
जाता है। विद्वानों का मत है कि जल चढ़ाते समय इसका स्पर्श और गंध रोग पैदा करने
वाले जीवाणुओं को नष्ट करने में सक्षम है। वैसे तो इसकी कई जातियां हैं, लेकिन श्वेत और श्याम या रामा तुलसी और श्यामा तुलसी ही प्रमुख हैं। पहचान
के लिए श्वेत के पत्ते तथा शाखाएं श्वेताय (हल्की सफेदी) तथा कृष्णा के कृष्णाय
(हल्का कालापन) लिये होते हैं। अतः विद्वानों के अनुसार तुलसी अपने में सम्पूर्ण
पौधा है जिसका भारतबर्ष में महत्वपूर्ण स्थान है | सूक्ष्मजीव संक्रमण में तुलसी
को एक बेहतरीन दवा माना जाता है। सर्दी, खांसी और बुखार में
उपयोग के अलावा तुलसी सोरायसिस और दाद-खाज के इलाज में भी काम आती है। तुलसी
की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करें –
6. जवारे
:
गेहूँ
के जवारे को आहार शास्त्री धरती की संजीवनी मानते है। यह वह अमृत है जिसमे अनेक
पोषक तत्वों के साथ साथ रोग निवारक तत्व भी है। अनेक फल व सब्जियों के तत्वों का
मिश्रण हमें केवल गेहूँ के रस में ही मिल जाता है। गेहूँ के रस में प्रचुर मात्रा
में पोषक तत्व होते है जिनके सेवन से कब्ज व्याधि और गैसीय विकार दूर होते हैं, रक्त का शुद्धीकरण भी
होता है परिणामतः रक्त सम्बन्धी विकार जैसे फोड़े, फुंसी,
चर्मरोग आदि भी दूर हो जाते हैं। आयुर्वेद में माना गया है कि फूटे
हुए घावों व फोड़ो पर जवारे के रस की पट्टी बाँधने से शीघ्र लाभ होता है। श्वसन
तंत्र पर भी गेहू रस का अच्छा प्रभाव होता है सामान्य सर्दी खांसी तो जवारे के
प्रयोग से ४-५ दिनों में ही मिट जाती है व दमे जैसा अत्यंत दुस्साहस रोग भी
नियंत्रित हो जाता है। गेहूँ के रस के सेवन से गुर्दों की क्रियाशीलता बढती है और
पथरी भी गल जाती है। इसके अतिरिक्त दाँत व हड्डियों की मजबूती के लिये, नेत्र विकार दूर करने और नेत्र ज्योति बढाने के लिये, रक्तचाप व ह्रदय रोग से दूर रहने के लिये, पेट के
कृमि को शरीर से बाहर निकालने के लिये तथा मासिक धर्म की अनियमितताए दूर करने के
लिये भी जवारे का रस के प्रयोग की बात कही जाती है। जवारे
की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करें –
7. दूब घास :
दूब घास को दूर्वा भी कहा जाता है। यह घास एक बार लगा दी तो ज़्यादा देखभाल नहीं मांगती और कठिन से
कठिन परिस्थिति में भी आराम से बढती है | इसमें कीड़े भी नहीं लगते हैं , इसलिए लॉन में कोई
अन्य घास न लगा कर दुर्वा ही लगाना चाहिए .कहा जाता है की यह समुद्र मंथन से मिली
थी |आदिवासियों
के अनुसार इसका रोजाना सेवन शारीरिक स्फूर्ति प्रदान करता है। शरीर को थकान महसूस
नहीं होती है। आदिवासी नाक से खून निकलने पर ताजी व हरी दूब का रस 2-2 बूंद नाक के नथुनों
में डालते हैं, जिससे नाक से खून आना बंद हो जाता है। इस पर नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढती है और अनेक विकार
शांत हो जाते है | यह शीतल और पित्त को शांत करने वाली है | दूब के रस को हरा रक्त
कहा जाता है, इसे पीने से एनीमिया ठीक हो जाता है | नकसीर में
इसका रस नाक में डालने से लाभ होता है | दूब के काढ़े से कुल्ले करने से मूंह के
छाले मिट जाते है | दूब का रस पीने से पित्त जन्य वमन (उल्टी ) ठीक हो जाता है | दूब
का रस दस्त में लाभकारी है | यह रक्त स्त्राव , गर्भपात को
रोकता है और गर्भाशय और गर्भ को शक्ति प्रदान करता है |
8. अकोना/आर्क/मदार
:
यह पौधा सर्व सुलभ है | ये पौधा हर जगह देखने को मिल जाता है
लेकिन इसके उपयोग की जानकारी कम लोगो को है हम आपको इसके प्रयोग की जानकारी दे रहे
है | आक का पौधा दो प्रकार का होता है एक सफ़ेद और एक नीला | इसे मदार या आक भी कहते हैं, इसके दूध को घावों पर
लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाते हैं। आक की जड को पानी में घिस कर लगाने से नाखूना रोग अच्छा हो जाता
है | आक की जड छाया में सुखा कर पीस ले और उसमें गुड मिलाकर खाने से शीत ज्वर शाँत
हो जाता है | आक की जड 2 सेर लेकर
उसको चार सेर पानी में पकायें जब आधा पानी रह जाय तब जड निकाल ले और पानी में 2
सेर गेहूँ छोडे जब जल नहीं रहे तब सुखा कर उन गेहूँओं का आटा पिसकर
पावभर आटा की बाटी या रोटी बनाकर उसमें गुड और घी मिलाकर प्रतिदिन खाने से गठिया
बाद दूर होती है | बहुत दिन की गठिया 21 दिन में अच्छी हो
जाती है | आक की जड के चूर्ण में काली मिर्च पीस कर मिलायें और रत्ती-रत्ती भर की
गोलियाँ बनाये इन गोलियों को खाने से खाँसी दूर होती है | आक की जड पानी में घिस
कर लगाने से नाखूना रोग हमेशा के लिए जाता रहता है |
9. मक्का :
शायद कम लोगों को ही पता होता है कि मक्का
या कॉर्न में छिपा होता है सेहत का खज़ाना। वैसे तो इसके बारे में बात करते ही
बरसात के मौसम में ठेले के पास खड़े होकर भूट्ठा खाने की बात याद आ जाती है। साथ
ही इसका स्वाद मुँह में पानी ला देता है। लेकिन इसके फायदों के बारे में जानते ही
आप आश्चर्य में पड़ जायेंगे। चलिये जानते हैं, वे कौन-से हैं?मक्का खाने से शरीर को ताकत और ऊर्जा
मिलती है। इसके सेवन से पीलिया भी दूर हो जाता है।मक्के के बीज, रेशम जैसे बाल,
मक्के की पत्तियां सभी जबरदस्त औषधीय गुणों की खान हैं।
10. कनेर
:
कनेर को बुखार दूर करने के लिए कारगर माना जाता है। आदिवासी हर्बल
जानकार सर्पदंश और बिच्छु के काटने पर इसका उपयोग करते हैं। गंजेपन के इलाज के लिए
आप कनेर के 60-70 ग्राम पत्ते (लाल या पीली दोनों में से कोई
भी या दोनों ही एक साथ ) ले | उन्हें पहले अच्छे से सूखे कपडे से साफ़ कर लें ताकि
उनपे जो मिटटी है वो निकल जाये | अब एक लीटर सरसों का तेल या नारियल का तेल या
जेतून का तेल ले के उसमे पत्ते काट काट के डाल दें | अब तेल को गरम करने के लिए रख
दें | जब सारे पत्ते जल कर काले पड़ जाएँ तो उन्हें निकाल कर फेंक दें और तेल को
ठण्डा कर के छान लें और किसी बोटल में भर के रख लें | कुछ दिन में ही आपको फर्क
दिखना शुरू हो जायेगा |
11. केवड़ा
:
केवड़ा सुगंधित फूलों वाले वृक्षों की एक प्रजाति है। पतले, लंबे, घने और काँटेदार
पत्तों वाले इस पेड़ की दो प्रजातियाँ होती है- सफेद और पीली।
| सफेद जाति को केवड़ा और पीली को केतकी कहते है ।
केतकी बहुत सुगन्धित होती है और उसके पत्ते कोमल होते है । इसमे जनवरी और फरवरी
में फूल लगते हैं। केवड़े की यह सुगंध साँपों को बहुत आकर्षित करती है । कत्थे को केवड़े के फूल में रखकर सुगंधित बनाने के बाद
पान में उसका प्रयोग किया जाता है | केवड़े के अंदर स्थित गूदे का साग भी बनाया
जाता है । इसके वृक्ष गंगा नदी के सुन्दरवन
डेल्टा में बहुतायत से पाए जाते हैं। केवड़े
की झाड़ में साँप प्रायः आश्रय लेते हैं। इसलिये बंगाल के हिन्दू लोग इसे मानसी
देवी का जन्मस्थान मानते हैं क्योंकि मानसी देवी सर्पों की रक्षिका देवी हैं ।
बरसात में इसमें फूल लगते हैं जो लंबे और सफेद
होते है और उसमें तीव्र सुगंध होती है। इसका फूल बॉल की तरह होता है और ऊपर से
लंबी पत्तियों से ढका रहता है । इसके फूल से इत्र बनाया और जल सुगंधित किया जाता
है । जिन
महिलाओं को मासिक धर्म संबंधित विकार होते हैं। उनके लिए केवड़ा रामबाण दवा है।
आदिवासी हर्बल जानकार विकारों को दूर करने के लिए केवड़े के पौधे का इस्तेमाल करते
हैं।
12. शमी :
पेड़-पौधे लगाना और इसकी हिफाजत करना हमारी गौरवशाली परंपरा का
हिस्सा रहा है | कुछ पेड़ धार्मिक नजरिए से भी बहुत
महत्वपूर्ण होते हैं | शमी भी ऐसे ही वृक्षों में शामिल है |
ऐसी मान्यता है कि घर में शमी का पेड़ लगाने से देवी-देवताओं की
कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-समृद्धिह आती है| साथ ही यह वृक्ष शनि के कोप
से भी बचाता है| शमी को वह्निवृक्ष भी कहा जाता है | आयुर्वेद की दृष्टि में तो
शमी अत्यंत गुणकारी औषधि मानी गई है| कई रोगों में इस वृक्ष के अंग काम आते हैं| शरीर
की गर्मी दूर करने के लिए शमी की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है। बहुमूत्रता
की समस्या में भी शमी की पत्तियों का रस सेवन किया जाता है।
13. बेलपत्र
:
आदिवासियों के अनुसार बेलपत्र दस्त और हैजा नियंत्रण में दवा का काम
करते हैं। शरीर से दुर्गंध का नाश करने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। यह आंत में कीड़े को नष्ट करने में मदद करता है, और पाचन विकार के लिए एक अच्छा उपाय है। ट्रंक
और बेल के पेड़ की शाखाओं 'Feronia गम' नामक
गोंद जैसा पदार्थ होते हैं। यह आमतौर पर डायरिया और पेचिश के इलाज के लिए प्रयोग
किये जाता है। विटामिन सी (Ascorbic Acid) की कमी से स्कर्वी
रोग होता है। बेल फल विटामिन सी से भरपूर होता है, तो यह
आपको स्कर्वी रोग से बचाता है। विटामिन सी के उच्च स्तर में होने के कारण यह
माइक्रोबियल और वायरल संक्रमण से रक्षा करके की लोगों की सुरक्षा, प्रतिरक्षा प्रणाली की ताकत और शक्ति बढ़ाता है। बेल में बीटा कैरोटीन की
अच्छी मात्रा पायी जाती है। बेल में थिअमिने और राइबोफ्लेविन होते हैं, जो हृदय टॉनिक के रूप में काम करते हैं। हार्ट को बूस्ट करते हैं और
स्वस्थ रखते हैं।
14. अर्जुन
छाल :
अर्जुन की छाल
में जरा-सी भुनी हुई हींग और सेंधा नमक मिलाकर सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ फंकी
लेने से गुर्दे का दर्द, पेट के दर्द और पेट की जलन में लाभ होता है। रक्तदोष, त्वचा रोग एवं
कुष्ठ रोग में अर्जुन की छाल का 1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ
सेवन करने से व इसकी छाल को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप करने एवं अर्जुन की छाल
को पानी में उबालकर या गुनगुने पानी में मिलाकर नहाने से कुष्ठ और त्वचा रोगों में
बहुत लाभ होता है। आग से जलने पर होने वाला घाव पर अर्जुन की छाल के चूर्ण को
लगाने से घाव शीघ्र ही भर जाता है। अर्जुन छाल को कूट कर काढ़ा बनाकर घावों और
जख्मों को धोने से लाभ होता है।दिल के रोगों में अर्जुन सर्वोत्तम माना गया है। अर्जुन छाल
शरीर की चर्बी को घटाती है। इसलिए वजन कम करने की औषधि के तौर पर भी इसका इस्तेमाल
किया जाता है।
15. पीपल :
पीपल का पेड़ औषधि का खजाना माना गया है| इस खजाने में हमारे शरीर
को नि:रोग बनाने की कई प्राकृतिक नुस्खे मौजूद हैं| ये पेड़ 24 घंटे ऑकसीजन छोड़ता
है| इन्हीं विशेषताओं के कारण आयुर्वेद में बताया गया है कि पीपल का हर भाग जैसे
तना, पत्ते, छाल, फल सभी चिकित्सा में काम आते हैं| इनसे कई गंभीर रोगों का भी इलाज संभव
है| पीपल के पेड़ की पत्तियां रक्त पित्त नाशक, रक्त शोधक,
सूजन मिटाने वाली, शीतल और रंग निखारने वाली
मानी जाती हैं| ये पत्तियां किडनी रोग में भी लाभकारी हैं, पीलिया,
रतौंधी, मलेरिया, खांसी,
दमा तथा सर्दी और सिर दर्द में पीपल की टहनी, लकड़ी,
पत्तियों, कोपलों और सींकों के प्रयोग का
उल्लेख मिलता है| पीपल को याददाश्त बढ़ाने,बच्चों के तीव्र
विकास और पेट दर्द में कारगर औषधि माना गया है।
16. अशोक
:
यह भारतीय वनौषधियों में एक दिव्य रत्न है। भारत वर्ष में इसकी
कीर्ति का गान बहुत प्राचीन काल से हो रहा है। प्राचीन काल में शोक को दूर करने और
प्रसन्नता के लिए अशोक वाटिकाओं एवं उद्यानों का प्रयोग होता था, और इसी आश्रय से इसके नाम शोकनाश, विशोक, अपशोक आदि रखे गए हैं। सनातनी वैदिक लोग तो इस पेड़ को पवित्र एवं आदरणीय
मानते ही हैं, किन्तु बौद्ध भी इसे विशेष आदर की दॄष्टि से
देखते हैं क्यूंकि कहा जाता है की भगवान बुद्ध का जन्म अशोक वृक्ष के नीचे हुआ था।
अशोक के वृक्ष भारत वर्ष में सर्वत्र बाग़ बगीचों में तथा सड़कों के किनारे सुंदरता
के लिए लगाए जाते हैं। महिलाओं के लिए अशोक वरदान है। गर्भाशय की बेहतरी, मासिक धर्म संबंधित रोगों के निवारण के लिए इसे अच्छा माना गया है।
17. जासवंत/गुडहल :
इसे गुड़हल भी कहा जाता है। गुड़हल के ताजे लाल फूलों को हथेली में
कुचल लिया जाए और इस रस को नहाने के दौरान बालों पर हल्का-हल्का रगड़ा जाए,
गुड़हल एक बेहतरीन कंडीशनर की तरह कार्य करता है। डाँग, गुजरात में आदिवासी गुड़हल के लाल फूलों को नारियल तेल में डालकर गर्म
करते हैं और बालों पर इस तेल से मालिश की जाती है। कहा जाता है कि नहाते वक्त
बालों पर इस तेल को लगाया जाए और नहाने के बाद बालों को आहिस्ता-आहिस्ता सूती
तौलिये से सुखा लिया जाए और नहाने के बाद भी इस तेल को बालों पर लगाया जाए काफी
तेजी से बालों की सेहत में सुधार आता है। गुड़हल के फूलों को चबाया जाए तो यह
स्फूर्तिदायक है और माना जाता है कि यह पौरूषत्व को बढ़ावा देता है। फूलों के तिल
के तेल में गर्म करके लगाने से बालों का झडऩा बंद हो जाता है और आदिवासी मानते है
कि यह बालों का रंग भी काला कर देता है।
18. शिवलिंगी
:
आदिवासियों का मानना है कि संतानविहीन दंपत्ती के लिये ये पौधा
एक वरदान है। पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार महिला को मासिक धर्म
समाप्त होने के 4 दिन बाद
प्रतिदिन सात दिनों तक संजीवनी के 5 बीज खिलाए जाए तो महिला
के गर्भधारण की संभावनांए बढ जाती है। इन आदिवासीयों द्वारा शिवलिंगी के बीजों को
तुलसी और गुड के साथ पीसकर संतानविहीन महिला को खिलाया जाता है, महिला को जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होती है। आदिवासी महिलाएं इसकी
पत्तियों की चटनी बनाती है, इनके अनुसारे ये टॉनिक की तरह
काम करती है। जिन महिलाओं को संतानोत्पत्ति के लिए इसके बीजों का सेवन कराया जाता
है उन्हें विशेषरूप से इस चटनी का सेवन कराया जाता हैपत्तियों को बेसन के साथ
मिलाकर सब्जी के रूप में भी खाया जाता है, आदिवासी भुमकाओं
(हर्बल जानकार) के अनुसार इस सब्जी का सेवन गर्भवती महिलाओं को करना चाहिए जिससे
होने वाली संतान तंदुरुस्त पैदा होती है। महिलाओं में गर्भधारण और शिशु
प्राप्ति के लिए शिवलिंगी के बीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
19. विदारीकंद
:
आदिवासी इसे पौरुषत्व और ताकत बढ़ाने के लिए उपयोग में लाते हैं।
लगभग 6 ग्राम की मात्रा में विदारीकन्द के चूर्ण को लगभग 10 ग्राम गाय के घी में
और लगभग 20 ग्राम शहद में मिलाकर गाय के दूध के साथ लेने से शरीर में ताकत आती है।
इसका सेवन लगातार 40 दिनों तक करना चाहिए। विदारीकन्द
के चूर्ण को घी, दूध और गूलर के रस के साथ खाने से प्रौढ़
पुरुष भी नवयुवकों जैसी शक्ति प्राप्त कर सकता है। 5 ग्राम
विदारीकन्द को पीसकर लुगदी बना लें। इसे खाकर ऊपर से 5 ग्राम
देशी घी और मिश्री मिलाकर, दूध के साथ पियें। यह बल और वीर्य
को बढ़ाता है तथा इससे नपुंसकता दूर होती है।
20. आम :
आम में प्रचूर मात्रा में विटामिन पाए
जाते हैं,
जिससे स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है। हाई ब्लड प्रेशर के रोगी के लिए
आम एक प्राकृति उपचार है, क्योंकि इसमें पोटेशियम (156
मिलीग्राम में 4 प्रतिशत) और मैग्निशियम (9 मिलीग्राम में 2 प्रतिशत) भारी मात्रा
में पाए जाते हैं। आम में विटामिन-ए पाया जाता है, जो
नेत्रदोष निवारक है| इसके उपयोग से आंख संबंधी विकार दूर होते हैं जैसे रंतौंधी
नेत्रदोष, आंखों की जलन, खुजली,
आंखों में सूखापन, आंखों से पानी आना, आदि रोगों में उपयोगी है| आम में अनेक स्वास्थ्य
उपयोगी फिनोल्स होते हैं, जैसे क्वारसेटीन, आइसोक्वारसेटिन, एस्ट्रोगेलिन, फिसेटिन, गैलिक एसिड, मिथाइल
गैलेट विटामिन सी, घुलनशील पेक्टिन आदि जो आहार नली के कैंसर
की संभावनाओं को काफी हद तक कम करने की क्षमता रखता है और कैंसर सेल्स निर्माण की
संभावना को कम करता है. कैंसर निरोधक प्रक्रिया में विटामिन-सी एक प्रभावी
एंटिऑक्सिडेंट का काम करता है| तुलसी की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक करें –
Comments
Post a Comment