Huge health benefits of adding sesame seeds to your diet : जानिए तिल के हैरान कर देने वाले कुछ आश्चर्यजनक फायदों के बारे में
Huge health benefits of adding sesame
seeds to your diet
भारतीय
खानपान में तिल का बहुत महत्व है। तिल तीन प्रकार के होते हैं- काले, सफेद और लाल। काले तिल सभी तिलों में श्रेष्ठ होते हैं। सर्दियों में तिल
खाने के आने लाभ होते हैं। तिल से शरीर को ऊर्जा मिलती है। तिल के सेवन से न केवल
पेट के बीमारियों बल्कि अन्य कई बीमारियों में भी लाभ मिलता है। तिल में अनेक
प्रकार के प्रोटीन जैसे कैल्शियम, आयरन, ऑक्जेलिक एसिड, अमीनो एसिड, प्रोटीन,
विटामिन बी, सी तथा ई प्रचुर मात्रा में होता
हैं।
तिल का तेल - तिल का
तेल भारी,
तर तथा गर्म होता है। यह शरीर में ताकत की वृद्धि करने वाला,
मल को साफ करने वाला, शरीर के रंग को निखारने
वाला, संभोग करने की शक्ति को बढ़ाने वाला, तिल का तेल कफ, वायु और पित्त को नष्ट करने वाला,
रक्तपित्त (खूनी पित्त) को दूर करने वाला,
गर्भाशय को साफ और शुद्ध करने वाला, भूख को
बढ़ाने वाला तथा बुद्धि को तेज करने वाला होता है। मधुमेह (डायबिटिज़), कान में दर्द, योनिशूल तथा मस्तिष्क के दर्द को
समाप्त करने वाला होता है।
रंग : तिल काला, सफेद और लाल प्रकार के होते हैं।
स्वाद : तिल का रस
खाने में मीठा, कड़वा, कषैला और
चरपरा होता है।
स्वरूप : तिल का 1 साल का पौधा कोमल तथा रोमवृत होता है। इसके पेड़ लगभग 15 इंच से 36 ऊंचे होते हैं। तिल के पौधे पर जगह-जगह
स्रावी ग्रंथियां पाई जाती है। इसकी पत्तियों का ऊपरी भाग सरल, मालाकार और आयताकार होता है और इसके अगले भाग में रेखाएं होती है तथा मध्य
भाग लटवाकार होता है। पत्तों के किनारे दांतों के समान कई भागों में कटी-कटी होती
है। तिल के फूल ड़ेढ़ इंच तक लम्बें, बैंगनी, सफेद और पीले बिंदुओं से युक्त होते हैं। इसकी फली 2 इंच लम्बी, चतुष्कोणाकार तथा आगे का भाग कुंठित सी
होती है।
प्रकृति : तिल की प्रकृति भारी तथा गर्म होती है। यह चिकना होता है। तिलों से एक धुंधले पीले रंग का द्रव निकाला जाता है जिसे तिल का तेल या मीठा तेल कहा जाता है। इसकी गंध रुचिकर होता है। इस तेल में प्रोटीन आदि तत्व पाये जाते हैं।
हानिकारक : गर्भवती
स्त्री को तिल नहीं खिलाना चाहिए क्योंकि गर्भ गिरने की आशंका रहती है।
विभिन्न रोगों में तिल के उपयोग :
तिल के बीज में सिसेमोलिन, सिमेमिआ, लाइपेज, निकोटिनिक एसिड, पामिटिक, लिनोलीक एसिड तथा थोड़ा-सी मात्रा में स्टियरिक और अरेकिडिक एसिड के ग्लिसराइडस पाये जाते हैं। तिल का उपयोग कई गंभीर बीमारियों को ठीक करने में किया जाता है जिसका विस्तार से वर्णन नीचे दिया गया है-
तिल के बीज में सिसेमोलिन, सिमेमिआ, लाइपेज, निकोटिनिक एसिड, पामिटिक, लिनोलीक एसिड तथा थोड़ा-सी मात्रा में स्टियरिक और अरेकिडिक एसिड के ग्लिसराइडस पाये जाते हैं। तिल का उपयोग कई गंभीर बीमारियों को ठीक करने में किया जाता है जिसका विस्तार से वर्णन नीचे दिया गया है-
दांतों के रोगों
में:
ïलगभग 25 ग्राम तिल को चबा-चबाकर खाने से दांत मजबूत होते हैं।
ïमुंह में तिल को भरकर 5-10 मिनट रखने से पायरिया (मसूढ़ों से खून का
आना) ठीक होकर दांत मजबूत होते हैं।
ïकाले तिल को पानी के साथ खाने से दांत मजबूत हो जाते हैं।
ïलगभग 60
ग्राम काले तिल को चबाकर खा लें, इसके बाद एक
गिलास ठंडा पानी लें। ऐसा प्रतिदिन करने से दांतोंके रोग ठीक हो जाते है। लेकिन
इसका प्रयोग करते समय गुड़-चीनी का सेवन न करें।
ïतिल के तेल से 10-15 मिनट तक कुल्ला कुछ दिनों तक लगातार करने
से हिलते हुए दांत मजबूत हो जाते हैं और पायरिया भी ठीक हो जाता है।
ïरुई के फोहे को तिल के तेल में भिगोकर मुंह में रखने से दांतों
का दर्द नष्ट हो जाता है।
ïपायरिया को ठीक करने के लिए तिल को चबाकर खाने से लाभ मिलता
है।
ïदांत हिल रहे हो तो काले तिल 10 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम खूब
चबा-चबाकर खायें। इसका 15 से 20 दिन तक
प्रयोग करने से दांतों के सभी प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं।
ïदांतों के सभी प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए रोजाना सुबह
दांतुन करने के बाद लगभग 30
ग्राम काले तिल को धीरे-धीरे खूब चबाकर खाएं और ऊपर से एक गिलास
पानी पीयें। तिल में गुड़, चीनी आदि न मिलायें।
ïदांत दर्द व मसूढ़ों की सूजन को ठीक करने के लिए तिल, चीता और सफेद सरसों
को गर्म पानी के साथ पीसकर लुगदी (पेस्ट) बना लें और इसे
दांतों पर प्रतिदिन सुबह-शाम लगाएं।
कान के रोगों में:
ïतिल के तेल में लहसुन की कली डालकर, गर्म करके, उसकी बूंदे कानों में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
ïबहरेपन का रोग दूर करने के लिए 50 मिलीलीटर तिल के तेल में लहसुन की 5 कली डालकर गर्म कर लें और छान लें तथा इसके बाद इसकी 2-3 बूंदे कान में डालने से लाभ मिलता है।
ïबहरापन (कान से कम सुनाई) देने पर उपचार करने के लिए 25 मिलीलीटर काले तिल
के तेल में लगभग 40 ग्राम लहसुन को पीसकर जलाकर तेल बना लें
इसके बाद इस तेल को छानकर रोजाना 2-3 बार कान में डालने से
अधिक आराम मिलता है।
ï40
मिलीलीटर हुलहुल के रस को 10 मिलीलीटर तिल के
तेल में मिलाकर पकाएं। पकने के बाद जब बस तेल ही बाकी रह जायें तो इसे आग पर से
उतार कर छान लें। इस तेल को कान में डालने से कान मे से मवाद बहना बंद हो जाता है।
ïकान के कीड़े को मारने के लिए तिल के तेल की 2 से 3 बूंदे कान में डालें। इससे लाभ मिलेगा।
ïतिल का तेल,
धतूरे का रस, सेंधानमक, मदार
के पत्ते और अफीम को कड़ाही में डालकर पका लें। जब पकने के बाद सब कुछ जल जाये तो
उसे उतारकर और छानकर एक शीशी में भर लें। नीम के पत्तों और फिटकरी को पानी में
डालकर पकाकर कान को इस पानी से पहले साफ कर लें। फिर बनाये हुये तेल की 5-6
बूंदे रोजाना कान में डालने से कान से मवाद बहना, कान का दर्द और बहरापन दूर हो जाता है।
ï125
मिलीलीटर तिल के तेल को 50 मिलीलीटर मूली के
रस में मिलाकर पका लें। जब पकने के बाद तेल ही बच जाये तो उसे छानकर शीशी में भर
लें। इसकी 2-3 बूंदे कान में डालने से कान का दर्द दूर हो
जाता है।
ïअजाझाड़ा के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल, फूल) की राख को तिल के तेल में डालकर पका लें।
इस तेल को कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है।
जख्म (घाव) हो जाने
पर:
ïघाव को ठीक करने के लिए तिल के तेल में रूई से बने फोहे या कपड़े की पट्टी भिगोकर घावों पर बांधने से लाभ मिलता है।
ïतिल को पीसकर शहद और घी मिलाकर उसे घावों पर लगाकर पट्टी
बांधने से घाव ठीक हो जाते हैं।
ïतिलों की पोटली (पुल्टिश) बनाकर घाव पर बांधने से घाव जल्दी भर
जाते हैं।
ïतिल का तेल घावों पर लगाने से वे ठीक होने लगते हैं।
ïपुराने घाव पर तिल की पट्टी बांधने से आराम मिलता है।
मासिकधर्म का रुक जाना:
ïलगभग 8 चम्मच तिल, गुड़, 10 काली मिर्च को पीसकर मिला लें। इसे एक गिलास पानी में डालकर गर्म करें जब आधा पानी बच जाए तो इसे दूसरे बर्तन में रखकर ठंडा करें। मासिकधर्म आने के 15 मिनट पहले से मासिक स्राव तक रोजाना सुबह और शाम पीने से मासिकधर्म खुलकर आता है।
ïलगभग 25
ग्राम तिल तथा एक ग्राम मिर्च के चूर्ण साथ दिन में 3 बार सेवन करने से मासिकधर्म खुलकर आता है।
तिल, जौ का चूर्ण और चीनी को शहद में मिलाकर खाने से प्रसूता स्त्रियों में खून
का बहना बंद हो जाता है।
ïकाले तिल,
त्रिकुटा और भारंगी सभी की 3-3 मिलीलीटर
मात्रा लेकर काढ़ा बनाकर गुड़ अथवा लाल शक्कर के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने
से बंद मासिकधर्म खुल कर आता है।
ïमासिकधर्म (माहवारी) आने में रुकावट होने पर तिल के पंचांग (जड़, तना, पत्ता, फल और फूल) का काढ़ा 60 मिलीलीटर
या तिल का चूर्ण 15 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन 2-3
बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
ïतिल का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन पीने से मासिकधर्म खुलकर आता है।
ïतिल के काढ़े में सोंठ, कालीमिर्च और पीपल का चूर्ण मिलाकर पीने से
मासिकधर्म की रुकावट दूर हो जाती है।
ïकाले तिल 10
ग्राम की मात्रा में 500 मिलीलीटर पानी
के साथ कलईदार बर्तन में पकाएं। जब यह लगभग 50 मिलीलीटर की
मात्रा में बचे तो इसमें पुराना गुड़ मिला दें। मासिकधर्म शुरू होने से 5 दिन पहले सुबह के समय इसे पीने से मासिकधर्म शुरू हो जाएगा। ध्यान रहें कि
मासिकधर्म आ जाने के बाद इसका सेवन न करें।
कब्ज में:
ïलगभग 6 ग्राम तिल को पीस लें, फिर इसमें मीठा मिलाकर खाने से कब्ज खत्म हो जाती है।
ïतिल, चावल और मूंग की दाल की खिचड़ी बनाकर खाने से कब्ज दूर हो जाती है।
ï60
ग्राम तिल को कूटकर इसमें समान मात्रा में गुड़ मिलाकर खाने से कब्ज
समाप्त हो जाती है।
ïतिल का छिलका उतारकर, मक्खन और मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर
प्रत्येक दिन सुबह-सुबह खाने से मल (ट्टटी) का रूकना ठीक हो जाता है और कब्ज की
शिकायत दूर हो जाती है।
ïतिल की लकड़ी की छाल 5 से 10 ग्राम पीसकर पीने
से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।
बालों के रोगों मे:
ïतिल के पौधे की जड़ और पत्तों के काढ़े से बालों को धोने से बालों का रंग काला हो जाता है।
ïकाले तिलों के तेल को शुद्ध करके बालों में लगाने से बाल असमय
में सफेद नहीं होते हैं। प्रतिदिन सिर में तिल के तेल की मालिश करने से बाल हमेशा
मुलायम, काले और घने रहते
हैं।
ïतिल के फूल और गोक्षुर को बराबर मात्रा में लेकर घी तथा शहद
में पीसकर सिर पर लेप करने से गंजापन दूर होता है।
ïतिल के तेल की मालिश करने के 1 घंटे बाद एक तौलिया गर्म पानी में डुबोकर उसे
निचोड़कर सिर पर लपेट लें तथा ठंडा होने पर दोबारा गर्म पानी में डुबोकर निचोड़कर
सीने पर लपेट लें। इस प्रकार कम से कम 5 मिनट लपेटे रहने दें
तथा इसके बाद ठंडे पानी से सिर को धो लें। ऐसा करने से बालों की रूसी दूर हो जाती
है तथा बालों के अन्य कष्ट भी खत्म हो जाते हैं।
ïबालों को काला करने तथा बालों को झड़ने से रोकने के लिए
प्रतिदिन तिल खाएं और इसके तेल को बालों में लगाएं। इससे बाल काले, लम्बे और मुलायम हो
जाते हैं।
ïकाला तिल,
सूखा आंवला, सूखा भृंगराज, मिश्री, चारों को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना
लें। इसमें से 6 ग्राम चूर्ण को प्रतिदिन सुबह-शाम खाकर ऊपर
से 250 मिलीलीटर दूध पी लें तथा इसके साथ-साथ
ब्रहाचर्य जीवन का भी पालन 1 साल तक करें। इससे लाभ मिलेगा।
ï250
ग्राम काला तिल, 250 ग्राम गुड़ दोनों को सही
तरह से कूटकर रख लें। इसमें से रोजाना 50 ग्राम चूर्ण को
खाने से शरीर में ताकत आती है। इससे अधिक पेशाब नहीं लगता और सफेद बाल भी काले हो
जाते हैं।
ïबालों के झड़ने पर तिल का तेल लगाने से लाभ मिलता है और यह सिर
को भी ठंडा रखता है।
ï10-10
ग्राम तिल के फूल, गोखरू नमक को एक साथ पीसकर
मक्खन में मिलाकर बालों की जड़ में मालिश करने से बालों के सभी रोग मिट जाते हैं।
ïसफेद तिल और चीते की जड़ और माठा (मठ्ठा) इन चारों औषधियों को
मिलाकर पीने से पलित (बाल सफेद होना) रोग ठीक हो जाता है।
ïतिल का लड्डू बनाकर खाने और सिर पर तिल के तेल से मालिश करने
से बालों के रोग ठीक हो जाते हैं।
खांसी में:
ïतिल के लगभग 100 मिलीलीटर काढ़े में 2 चम्मच चीनी डालकर पीने से खांसी ठीक होने लगती है।
ï4
चम्मच तिल 1 गिलास पानी में मिलाकर इतना
उबालें कि पानी आधा बच जायें। इसे रोजाना 3 बार पीने से
सर्दी लगकर आने वाली सूखी खांसी ठीक हो जाती है।
ïयदि सर्दी लगकर खांसी हुई तो चार चम्मच तिल और इतनी ही मिश्री
या चीनी मिलाकर एक गिलास पानी में उबालें। इस पानी को पीने से खांसी ठीक होने लगती
है।
ïतिल के काढ़े में चीनी या गुड़ मिलाकर लगभग 40 मिलीलीटर रोजाना 3-4
बार सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है। इस काढे़ को सुबह-शाम दोनों
समय सेवन करने से लाभ होता है।
ïसूखी खांसी में तिल के ताजा पत्तों का रस 40 मिलीलीटर रोजाना 3-4
बार पीने से अधिक लाभ मिलता है।
बहुमूत्र रोग (पेशाब का बार-बार आना) में:
ï40 ग्राम काले तिल और 20 ग्राम अजवायन को पीसकर और छानकर इसमें 60 ग्राम गुड़ मिलाकर 5-5 ग्राम सुबह और शाम पानी के साथ खाने से बुढ़ापे में बार-बार पेशाब आने का रोग दूर हो जाता है।
ï3-3
ग्राम काले तिल और अजवायन को गुड़ में मिलाकर 1 हफ्ते तक सुबह और शाम खाने से बार-बार पेशाब आना कम हो जाता है।
ï6
ग्राम काले तिल और प्रवाल भस्म को खाने से मूत्रातिसार (बार-बार
पेशाब आना) का रोग दूर हो जाता है।
ïकाला तिल 400
ग्राम, अजवायन 20 ग्राम
और गुड़ साठ ग्राम को पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 6-6 ग्राम
चूर्ण सुबह-शाम खाने से बुढ़ापे में ज्यादा आने वाला पेशाब कम होता है।
ïसुबह-शाम गुड़ से बने हुऐ तिल का 1-1 लड्डू 7 दिनों तक खाने से बार-बार पेशाब आना बंद होता है।
ïतिल 10
ग्राम पीसकर 50 ग्राम गुड़ में मिलाकर रोज
खायें इससें बहुमूत्रता में लाभ मिलता है।
ïलगभग 50
ग्राम काले तिल, 25 ग्राम अजवायन 100 ग्राम गुड़ को मिलाकर चूर्ण बना लें। इसमें से 8 ग्राम
चूर्ण को सुबह-शाम प्रतिदिन सेवन करने से बच्चों के बार-बार पेशाब करने की बीमारी
दूर हो जाती है।
ïतिल के लड्डू सुबह और शाम खाने से अधिक पेशाब आना बंद हो जाता
है।
सभी प्रकार की सूजन में:
ï2 चम्मच तिल को पीसकर भैंस के मक्खन और दूध में शरीर के सूजन वाले भाग पर लगाने से सूजन खत्म हो जाती है।
ï10
ग्राम तिल और 100 ग्राम मूली को एक साथ खाने
से चमड़ी के नीचे इकट्ठा हुआ पानी खत्म हो जाता है। इस तरह से शरीर की सूजन खत्म हो
जाती है।
ïतिल के काढ़े और यष्टिमधु की जड़ के चूर्ण को बराबर मात्रा में
मिलाकर बदन पर लेप करने से बदन की सूजन खत्म हो जाती है।
ïतिल, नींबू के पत्ते, सेंधानमक, हरिद्राप्रफल,
दारुहरिद्रा की जड़ और त्रिवृत की जड़ के चूर्ण को बराबर मात्रा में
लेकर इसको घी में काढ़ा बनाकर रोगी को देने से उसके शरीर की सूजन खत्म हो जाती है।
ï50
मिलीलीटर तिल के तेल में 25 ग्राम रत्नजोत के
चूर्ण को डालकर उबालें। नीचे उतारकर इसमें आधा ग्राम कपूर चूरा मिलाकर घोटकर मालिश
करने से सूजन मिट जाती है।
मासिकधर्म से सम्बंधित रुकावट में:
ïतिल के 100 मिलीलीटर काढ़े में 2 ग्राम सौंठ, 2 ग्राम काली मिर्च और 2 ग्राम पीपल का चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से गर्भाशय के कष्ट तथा मासिकधर्म की रुकावट दूर हो जाती है।
ï10
ग्राम तिल और 10 ग्राम गोखरू को रात में पानी
में भिगोकर सुबह उनका रस निकालकर उसमें थोड़ा बूरा डालकर पीने से बंद मासिकधर्म
दुबारा शुरू हो जाता है।
ïतिलों का चूर्ण आधा ग्राम की मात्रा में दिन में तीन-चार बार
पानी के साथ लेने से मासिकधर्म नियमित रूप से आने लगता है।
ïतिल का काढ़ा बनाकर लगभग 100 मिलीग्राम सुबह और शाम पीने से मासिकधर्म
समय से आने लगता है।
पथरी में:
ïतिल के पेड़ की छाया में सूखी कोमल कोपलों की राख लगभग 8 से 10 ग्राम तक रोजाना खाने से पथरी गलकर निकल जाती है।
ïतिल के फूलों के 4 मिलीलीटर रस में 2 चम्मच
शहद और 250 मिलीलीटर दूध मिलाकर पीने से पथरी गलकर खत्म हो
जाती है।
ïतिल के पौधे की लकड़ी की राख (भस्म) लगभग 8 से 15 ग्राम तक सिरके के साथ सुबह और शाम भोजन से पहले लेने से पथरी गलकर मल के
द्वारा बाहर निकल जाती है।
ï1
से 2 ग्राम तिल के तने का क्षार (खार) दही के
पानी के साथ दिन में सुबह और शाम सेवन करने से पथरी गलकर निकल जाती है।
विष (जहर) खत्म करने के लिए:
ïतिल की छाल और हल्दी को पानी में पीसकर लेप करने से मकड़ी का जहर उतर जाता है।
तिल को पानी के साथ पीसकर लेप बना लें। इस लेप को बिल्ली के
काटे स्थान पर लगाने से जहर का असर कम हो जाता है।
ïतिलों को सिरके में पीसकर डंक के स्थान पर लगाए इससे भिरड़
(बर्रे) का जहर उतर जाता है।
ïतिलों की लुगदी को घी के साथ लेने से विषम बुखार (टायफाइड) में
लाभ होता है।
ïतिल का तेल,
कुटे हुए तिल, गुड़ और आक (मदार) के दूध को
बराबर मात्रा में पिलाने से हड़क-वात के जहर में लाभ मिलता है।
ïतिल का तेल व पानी को गर्म करके गर्म-गर्म पीने से धतूरे का
जहर उतर जाता है।
अर्श (बवासीर) में:
ïतिल को पानी के साथ पीसकर मक्खन के साथ दिन में 3 बार भोजन से 1 घंटा पहले चाटने से लाभ मिलता है और बवासीर के मस्से से खून निकलना रुक जाता है।
ïतिल, नाग केशर और शर्करा का चूर्ण खाने से बवासीर नष्ट हो जाती है।
ïप्रतिदिन कुछ दिनों तक लगभग 60 ग्राम काले तिल खाकर ऊपर से ठंडा पानी पीने
से बिना खून वाले बवासीर (वादी बवासीर) ठीक हो जाते हैं। इसे दही के साथ पीने से
खूनी बवासीर भी नष्ट हो जाती है।
ïलगभग 3-6
ग्राम तिलों का चूर्ण समान मात्रा में मक्खन के साथ दिन में 3
बार दें। इससे बवासीर से छुटकारा मिल जाता है।
ïखूनी बवासीर को ठीक करने के लिए तिलों के 5 ग्राम चूर्ण में
बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर बकरी के 4 गुने दूध के साथ
पीने से लाभ मिलता है।
ï50
ग्राम काले तिल को इतने पानी में ही भिगोएं जब तिल पानी को सोख लें।
फिर इसे पीसकर इसमें 1 चम्मच मक्खन, 2 चम्मच
पिसी हुई मिश्री मिलाकर सुबह और शाम लेने से बवासीर के मस्से से खून का बहना बंद
हो जाता है।
ï10
ग्राम काले तिल को अच्छी तरह से पीसकर इसमें लगभग 125 से 150 मिलीलीटर बकरी के दूध में मिलाकर, उसमें 5 ग्राम चीनी डालकर सुबह पीने से खूनी बवासीर
ठीक हो जाता है।
ïतिल को मक्खन या चीनी में मिलाकर बकरी के दूध के साथ पीयें। इससे बवासीर में
लाभ मिलता है।
ï10
ग्राम काले तिल को महीन कूटकर 20 ग्राम मक्खन
मिलायें। इसको खाने से खूनी बवासीर ठीक हो जाती है।
ï60
ग्राम काले तिल खाकर ठंडा पानी पीयें और तिल का तेल बवासीर के
मस्सों पर लगाने से मस्सें सूख जाते हैं और खूनी बवासीर में लाभ होता है।
चोट तथा मोच आने पर:
ïतिल की खली को पानी के साथ पीसकर गर्म करके बांधने से चोट और मोच में लाभ मिलता है।
ïतिल और अंरडी को अलग-अलग कूटकर तिल्ली के तेल में मिलाकर लेप
करने से चोट की पीड़ा दूर हो जाती है।
ïतिल की खली (तेल निकालने के बाद बचा हुआ पदार्थ) को पानी में
पकाकर मोच पर गर्म-गर्म बांधने से मोच में आराम हो जाता है।
ïतिल की खल (तेल निकालने के बाद बचा हुआ पदार्थ) कूटकर पानी में
डालकर पकाकर गर्म ही चोट पर लगाने से लाभ मिलता है।
ïतिल के तेल 50
ग्राम में अफीम 2 ग्राम की मात्रा में मिलाकर
मोच की मालिश करें।
आधासीसी (माइग्रेन) में:
ïलगभग 2 ग्राम तिल और लगभग 5 ग्राम वायविडंग को पानी के साथ पीसकर सिर पर लेप करने से आधासीसी का दर्द खत्म हो जाता है।
ïकाले तिल,
कच्ची हल्दी, बादाम और आंवले को 10-10 ग्राम की बराबर मात्रा में लेकर इन सब को जल के साथ पीसकर माथे पर लेप
करें इससे आधासीसी ठीक हो जाता है।
ïकाले तिल और वायविडंग को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर गर्म
पानी में मिलाकर सूंघने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है।
ïतिल की खल,
सेंधानमक, तेल और शहद को मिलाकर माथे पर लेप
करने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है।
ïतिल और बायविडंग पीसकर सिर पर लेप करने से आधे सिर के दर्द में
लाभ मिलता है।
ïतिल की पुरानी खली को गाय के पेशाब में पीसकर लेप करने से
आधासीसी का रोग ठीक होता है।
खाज-खुजली तथा दाद में:
ïतिल के तेल में चमेली का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर खाज-खुजली पर लगाने से आराम मिलता है।
ï250
मिलीलीटर तिल्ली के तेल में थोड़ी सी दूब (घास) डालकर आग पर
पकाने के लिए रख दें। दूब (घास) जब लाल हो जाये तो उसे उतार कर छान लें और इस तेल
को खुजली वाले स्थान पर लगायें।
ïतिल के तेल में दूब (घास) का रस मिलाकर मालिश करने से खुजली
ठीक हो जाती है।
ï250
मिलीलीटर तिल के तेल में 60 मिलीलीटर दूब
(घास) का रस डालकर पका लें। इसके बाद इसे ठंडा कर लें और छानकर किसी बर्तन या बोतल
में भर दें। इस तेल को 7 दिन तक खाज-खुजली पर लगाने से लाभ
मिलता है।
ïबावची, पवाड के बीज, सरसों, हल्दी,
तिल, दारुहल्दी, कूट और
मोथा को बराबर मात्रा में लेकर ताजे पानी के साथ पीसकर लेप बना लें। इस लेप को
खाज-खुजली और दाद पर लगाने से ये ठीक हो जाते हैं।
ï2
चम्मच तिल के तेल को गर्म करके उसमें तारमीरा का तेल मिला लें। फिर
इसमें 2 चम्मच पिसी हुई राल और 1 चम्मच
पीला मोम मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को दाद पर लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
शरीर को शक्तिशाली बनाने
में:
ïलगभग 100-100 ग्राम की मात्रा में काले तिल और ढाक के बीजों को पीसकर और इनको छानकर इसमें 200 ग्राम चीनी मिलाकर इस मिश्रण को रोजाना 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम पानी के साथ लेने से शरीर में ताकत की वृद्धि होती है।
ïतिल और अलसी का काढ़ा बनाकर पीने से शरीर में संभोग (स्त्री
प्रसंग) करने की क्षमता में वृद्धि होती है।
ïलगभग 20
ग्राम की मात्रा में काले तिल और इतनी ही मात्रा में गोखरू को महीन
पीसकर इसका चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण को बकरी के दूध में डालकर खीर बना लें। इसे
खाने से शरीर में शक्ति की वृद्धि होती है। इसका सेवन लगातार 15 या 20
दिनों तक करने से शरीर की कमजोरी खत्म हो जाती है।
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