भस्त्रिका प्राणायाम योग : रोजाना भस्त्रिका प्राणायाम करने से होते हैं कई फायदे (Bhastrika Yoga Breathing Exercise to Burn Fat for Natural Weight Loss & More)

                भस्त्रिका प्राणायाम योग : रोजाना भस्त्रिका प्राणायाम करने से होते हैं कई फायदे    


    Bhastrika Yoga Breathing Exercise to Burn Fat for Natural Weight
                                           Loss & More    


भस्त्रिका प्राणायाम में सांस लेने व छोड़ने की गति अधिक तेजी से करनी होती है। संस्कृत में भस्त्रिक का अर्थ धमनी होता है। योग में इसका नाम भस्त्रिका इसलिए रखा गया है, क्योंकि इसमें व्यक्ति की सांस लेने व छोड़ने की गति लौहार की धमनी की तरह होती है। इस प्राणायाम से प्राण व मन स्थिर होता है और कुण्डलिनी जागरण में सहायक होता है। इस प्राणायाम के अभ्यास से योगी अपने विचलित वीर्य को पुन: वाष्प में परिवर्तित कर दिया करते थे।
    क्यों जरूरी भस्त्रिका प्राणायाम:                                                                    

व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता है पेट तक श्वास लेना छोड़ता जाता है । यही नहीं बल्कि अत्यधिक सोच के कारण वह पूरी श्वास लेना भी छोड़ देता है । जैसे-तैसे श्वास फेफड़ों तक पहुँच पाती है । इसी कारण शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती । ऑक्सीजन की कमी के कारण जल और भोजन के लाभकारी गुण और तत्वों का भी हमें लाभ नहीं मिल पाता है।



क्रोध, भय, चिंता, सेक्स के विचार से जहाँ हमारी श्वासों की गति परिवर्तित होकर दिल और दिमाग को क्षति पहुँचाने वाले तत्व ग्रहण करती है वहीं यह अस्वाभाविक गति हममें नकारात्मक ऊर्जा का लगातार संचार कर हमें जीवन के आनंद से अलग कर देती है। प्राणायाम से दिल और दिमाग को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है इसके कारण यह सेहतमंद बने रहते हैं जोकि जीवन की सफलता और लंबी आयु के लिए आवश्यक है। आज हम आपको भस्त्रिका प्राणायाम की विधि, लाभ, तथा सावधानियों के बारे में बताने जा रहे हैं इस प्राणायाम का अभ्यास दो विधियों द्वारा किया जाता है-

    भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि :                                                            

 

    प्रथम  विधि(FIRST METHOD)                                                                   


    प्रथम चरण                                                                                               
                                               

vइसके अभ्यास के लिए सबसे पहले आप पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठ जाएं। इसके बाद अपने बाएं हाथ की हथेली को नाभि के पास  ऊपर की ओर करके रखें। अब दाएं हाथ के अंगूठे को नाक के दाएं छिद्र के पास लगाएं और मध्यम व तर्जनी को बाएं छिद्र के पास लगाकर रखें । 

    दूसरा चरण-                                                                                             

                             
    तीसरा चरण-                                                                                             
                                      
इसके बाद  बाएं छिद्र को बंद करके दाएं से आवाज के साथ सांस बाहर निकालें और फिर तेजी से सांस अंदर लें। फिर दाएं छिद्र को बंद करके बाएं से सांस को आवाज के साथ बाहर निकालें। इस तरह 15 से 20 बार करने के बाद दोनों छिद्रों से सांस लें। 
    चौथा चरण-                                                                                                               
   
तत्पश्चात  बाएं छिद्र को बंद करके दाएं छिद्र से धीरे-धीरे सांस छोड़ें। अब बाएं छिद्र को बंद कर दाएं छिद्र से तेज गति से सांस को अंदर लें और फिर छोड़ें। इसे 10 से 15 बार करने के बाद पहले की तरह ही सांस लें और छोड़ें। 
    पांचवां चरण-                                                                                       


तदोपरान्त  दाएं को बंद कर बाएं से धीरे-धीरे सांस बाहर निकालें। इसके बाद दोनों छिद्रों से तेजी से आवाज के साथ सांस लें और छोड़ें। इस तरह इसे 10 से 15 बार करें। फिर सांस अंदर लेकर जितनी देर तक सम्भव हो सांस को रोककर रखें और फिर धीरे-धीरे दोनों छिद्रों से सांस को बाहर छोड़ें। 

    छठवां चरण-                                                                                          


इन तीनों का अभ्यास 10 से 15 बार करें और धीरे-धीरे इसका अभ्यास बढ़ाते हुए 50 बार तक करने की कोशिश करें। इस क्रिया में सांस लम्बी व गहरी तथा तेज गति से लेते हैं। ध्यान रहे कि आवाज के साथ सांस छोड़े और बिना आवाज के ही सांस लें। सांस लेने व छोड़ने के साथ-साथ ही पेट को पिचकाएं और फुलाएं। इस तरह इस क्रिया को 3 से 5 मिनट तक करें।

     दूसरी विधि-                                                                                               

          
vसिद्धासन या सुखासन में बैठकर कमरगर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें।

vइसके बाद तेजी से नाक के दोनों छिद्रों से सांस ले और बाहर छोड़े। 

vतत्पश्चात  गहरी सांस लें और जितनी देर सम्भव हो सांस को रोककर रखें और जालंधर बंध करें। 

vकुछ समय तक उसी अवस्था में रहें। इसके बाद सांस छोड़ दें। 

vइस तरह इस क्रिया को 3 से 5 बार करें। इस क्रिया में आंखों को बंद कर ´ओम´ का ध्यान करें और मन में अच्छे विचार रखकर ध्यान करें।

    विशेष(NOTE)-                                                                                  


सांस अंदर लेते समय पेट को अंदर करके रखें। इसके अभ्यास के क्रम में मक्खन, घी तथा दूध की मात्रा अधिक खानी चाहिए। प्राणायाम के अभ्यास के समय आंखों को बंद कर लें और सांस लेने व छोड़ने के क्रम में ´ओम´ का जाप करें और मन में विचार व चिंतन करें। इस क्रिया को सर्दी के मौसम में 3 बार और तेज गर्मी के मौसम में एक बार करें।

    सावधानियां  :                                                                                      

  Ø भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले नाक बिल्कुल साफ कर लें। भ्रस्त्रिका प्राणायाम प्रात: खुली और साफ हवा में करना चाहिए। क्षमता से ज्यादा इस प्राणायाम को नहीं करना चाहिए।

  Ø दिन में सिर्फ एक बार ही यह प्राणायाम करें। प्राणायाम करते समय शरीर को न झटका दें और ना ही किसी तरह से शरीर हिलाएँ। श्वास लेने और श्वास छोड़ने का समय बराबर रखें।



  Ø नए अभ्यासी शुरू में कम से कम दस बार श्वास छोड़ तथा ले सकते हैं। जिनको तेज श्वास लेने में परेशानी या कुछ समस्या आती है तो प्रारंभ में श्वास मंद-मंद लें। ध्यान रहे कि यह प्राणायाम दोनों नासिका छिद्रों के साथ संपन्न होता है। श्वास लेने और छोड़ने को एक चक्र माना जाएगा तो एक बार में लगभग 25 चक्र कर सकते हैं।



  Ø उक्त प्राणायाम को करने के बाद श्वासों की गति को पुन: सामान्य करने के लिए अनुलोम-विलोम के साथ आंतरिक और बाहरी कुंभक करें या फिर कपालभाती पाँच बार अवश्य कर लें।



  Ø इस प्राणायाम को करते समय श्वास की गति पहले धीरे रखें, अर्थात दो सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर मध्यम गति से श्वास भरें और छोड़ें, अर्थात एक सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर श्वास की गति तेज कर दें अर्थात एक सेकंड में दो बार श्वास भरना और श्वास निकालना। श्वास लेते और छोड़ते समय एक जैसी गति बनाकर रखें।


  Ø वापस सामान्य अवस्था में आने के लिए श्वास की गति धीरे-धीरे कम करते जाएँ और अंत में एक गहरी श्वास लेकर फिर श्वास निकालते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। इसके बाद योगाचार्य पाँच बार कपालभाती प्राणायाम करने की सलाह देते हैं।
    चेतावनियाँ:                                                                                        

  Ø उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्ति इस प्राणायाम को न करें|

  Ø ह्रदय रोग, हार्निया से पीड़ित व्यक्ति  तथा गर्भवती महिलाएँ इसका अभ्यास न करें।

  Ø दमा, टीबी, अल्सर, पथरी, मिर्गी, स्ट्रोक से ग्रसित व्यक्ति इस प्राणायाम को न करें |

  Ø फेफड़ें, गला, हृदय या पेट में किसी भी प्रकार की समस्या हो, नाक बंद हो या साइनस की समस्या हो या फिर नाक की हड्डी बढ़ी हो तो चिकित्सक से सलाह लेकर ही यह प्रणायाम करना या नहीं करना चाहिए।

  Ø अभ्यास करते समय अगर चक्कर आने लगें, घबराहट हो, ज्यादा पसीना आए या उल्टी जैसा मन करे तो प्राणायाम करना रोककर आराम पूर्ण स्थिति में लेट जाएँ।

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