Frozen Shoulder Causes, Symptoms, Treatments and diagnosis ( क्या आप कंधे के दर्द से परेशान हैं? कहीं आप एडहेसिव कैप्सूलाइटिस से पीड़ित तो नहीं हैं? यदि हैं तो जानिये फ्रोजेन शोल्डर के लक्षण, कारण , जांच एवं उपचार )


              Frozen Shoulder Causes, Symptoms, Treatments And Diagnosis       

  

आधुनिक समय  में मनुष्य इतना व्यस्त हो गया है जिस कारण वह व्यायाम करने के लिए आवश्यक समय नहीं निकाल पाता | इस व्यस्त जीवनशैली ने सेहत को कई स्तरों पर बहुत नुकसान पहुंचाया है । इस व्यस्तता के कारण हम अपनी सेहत के प्रति अत्यंत लापरवाह हो चुके हैं | सेहत के प्रति यह लापरवाही और नियमित व्यायाम न करने से हमारी  पीठ, कमर, गर्दन, घुटनों और कंधे के दर्द जैसी अनेकों पीड़ादायक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं । ऐसी ही एक समस्या है फ्रोजन  शोल्डर  । फ्रोजेन शोल्डर यानी  कंघे में अकड़न। आजकल ये बीमारी आम हो गई है। अगर किसी व्यक्ति के कंधें अकड़ जाते हैं सही तरह से काम नहीं करतेकिसी भी काम को करने में या सामान को उठाने में रोगी को कंधों में बहुत तेज दर्द होता है  तो वह फ्रोजेन शोल्डर नामक बीमारी से ग्रसीत हो सकता है |


आंकडों बताते हैं कि दिल्ली, मुंबई  सहित तमाम महानगरों में लगभग आठ लाख लोग गर्दन की समस्याओं से जूझ रहे हैं। इसका मुख्य कारण है- कंप्यूटर के आगे लंबे समय तक  बैठे रहना तथा टहलने और व्यायाम करने के लिए उचित समय न निकाल पाना एवं पूरे दिन एक जैसी स्थिति में बैठे रहने से हमारे शरीर के जोड़ जाम होने लगते हैं। हालांकि फ्रोजन शोल्डर क्यों होता है, यह तो पता नहीं चल सका है, लेकिन यह समस्या प्रोफेशनल्स और खासतौर पर स्त्रियों को अधिक हो रही है 

       जानें सामान्य दर्द से कितना अलग है फ्रोजेन शोल्डर का दर्द-                  


फ्रोजेन शोल्डर के दौरान कंघा बिल्कुल सूज जाता है और अकड़न के कारण कठोर हो जाता है जिससे हाथ हिलाना बहुत मुश्किल होता है और हिलाने पर तीव्र दर्द होने लगता है। मेडिकल भाषा में इस दर्द को एडहेसिव  कैप्सूलाइटिस  कहा जाता है। हमारे शरीर में हर जोड़ / जॉइंट के बाहर एक कैप्सूल  होता है तथा फ्रोजन  शोल्डर की अवस्था  में यही कैप्सूल स्टिफ / सख्त  हो जाता है और समय बीतने के साथ-साथ इसमें धीरे-धीरे और अचानक तीव्र वेदना उत्पन्न होने लगती है|  कुछ समय के बाद यह दर्द पूरे कंधे को जाम कर देता है। जिसके कारण हम अपने रोजमर्रा के कार्यों जैसे ड्राइविंग करना , शर्ट पहनना , बेल्ट पहनना आदि काम करने में भी असमर्थता महसूस करने लगते हैं । सामान्यतः लोग गर्दन के किसी भी दर्द को फ्रोजन  शोल्डर  समझने की भूल करते है, जबकि ऐसा नहीं है। कुछ लोग इसे  अ‌र्थ्रराइटिस  समझने की भूल भी करते  है। फ्रोजेन शोल्डर बहुत कम लोगों को होता है परन्तु यह समस्या किन-किन कारणों से उत्पन्न होती है इसका सही-सही कारण ज्ञात नहीं हुआ है |

        तथ्य-                                                                                           


a60 प्रतिशत लोग जो इससे पीड़ित होते हैं वह  दो-तीन साल में खुद  ठीक हो जाते हैं।
aजबकि  90 प्रतिशत लोग छः-सात साल के भीतर ठीक हो जाते हैं।
aलेकिन 10 प्रतिशत लोग होते हैं जो इस समस्या से स्वयं ही ठीक नहीं हो पाते, ऐसे मरीजो का इलाज़  सर्जिकल और नॉन-सर्जिकल  दोनों प्रक्रियाओं द्वारा किया जाता है |
aप्रायः देखा गया है कि पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को फ्रोजेन शोल्डर की  समस्या ज्यादा  होती है।
aचोट या शॉक आदि से उत्पन्न होने वाला हर दर्द फ्रोजन शोल्डर नहीं होता।
a यह समस्या अधिकतर 35  से 70 वर्ष की आयु वर्ग में ज्यादा होती है । ऐसा क्रियाशीलता की कमी के कारन होता है |
aकुछ बीमारियों जैसे -डायबिटीज,  थायरायड, कार्डियो वैस्कुलर  समस्याओं, टीबी और पार्किसन के मरीजों  को यह समस्या ज्यादा  घेरती है।

       फ्रोजेन शोल्डर के लक्षण-                                                                 


aफ्रोजेन शोल्डर के दौरान कंघा बिल्कुल सूज जाता है और अकड़न के कारण कठोर हो जाता है जिससे हाथ हिलाना बहुत मुश्किल होता है और हिलाने पर तीव्र दर्द होने लगता है। 
aकंधे को किसी भी दिशा में मोड़ने में रोगी को बहुत दिक्कत होती है। 
aकंधे का दर्द रोगी की गर्दन और उसके ऊपर के भाग में फैल जाता है। 
aहाथ की काम करने की गति बहुत धीमी हो जाती है और रात के समय दर्द अधिक परेशान करने लगता है। छोटे-छोटे काम जैसा कंघी करनाबटन बंध करना इत्यादि करना भी मुश्किल हो जाता है।
aहाथ को पीछे की ओर करना होता है तो उसके कंधे में बहुत तेज दर्द होता है। 
aकई बार फ्रोजन शोल्डर के तहत बहुत ज्यादा सूजन और तेज दर्द अचानक शुरु हो जाता है और कंघे में ऐंठन उत्पन्न होने लगती है जो कई मिनटों या फिर घंटो तक भी रह सकती है। यह समय कई महीनों या सालों तक भी हो सकती है।कंधे को किसी भी दिशा में मोड़ने में रोगी को बहुत दिक्कत होती है।
aरोगी अगर बालों में कंघी करने के लिए हाथ उठाता है या कपड़ों के बटन आदि खोलता है तो उसको बहुत ज्यादा परेशानी होती है।
aरोगी को अगर अपने हाथ को पीछे की ओर करना होता है तो उसके कंधे में बहुत तेज दर्द होता है।
aकंधे का दर्द रोगी की गर्दन और उसके ऊपर के भाग में फैल जाता है।
aकभी-कभी रात में दर्द  की तीव्रता बढ़ जाती है।

       फ्रोजेन शोल्डर की विभिन्न स्तिथियाँ -                                      


फ्रोजेन शोल्डर के दौरान कंघा बिल्कुल सूज जाता है और अकड़न के कारण कठोर हो जाता है जिससे हाथ हिलाना बहुत मुश्किल होता है और हिलाने पर तीव्र दर्द होने लगता है।  इसके तीन चरण हैं-

       1- प्री-फ्रीजिंग पीरियड :                                                                    


यह फ्रोजेन शोल्डर की पहली स्तिथि है | इस स्तिथि के दौरान हम एडहेसिव केप्सुलाईटिस को पहचान नहीं पाते हैं| इस अवस्था में हमारा  कंधा फ्रीज या जाम होने लगता है। यह स्टेज फ्रीजिंग/पेनफुल स्टेज भी कहलाती है इस स्तिथि में मरीज़ समस्या को गंभीरता से नहीं लेता है तथा वह समस्या के स्वयं ठीक होने का इंतज़ार करता है लेकिन धीरे-धीरे दर्द की तीव्रता बढती है जिससे तेज दर्द होता है, यह दर्द अकसर रात में अधिक बढ जाता है। इस स्टेज में कंधे को घुमाना या मूव करना मुश्किल हो जाता है। यह समस्या 1-3 माह तक रहती है | इस स्तिथि में कंधे को बिना हिलाए भी दर्द का थोडा-थोडा अनुभव होता है किन्तु जब हम कंधे को हिलाते हैं या थोडा भी मूव करते हैं तो दर्द की तीव्रता में भी इजाफा होने लगता है | इस अवस्था में कंधे की मूवमेंट में हल्की सी असुविधा का अनुभव होता है और आप धीरे-धीरे कंधे का कम से कम उपयोग करना शुरू कर देते हैं | इस स्तिथि में मरीज़ बांह को आगे-पीछे, ऊपर-नीचे ले जाने में असमर्थता का अनुभव करने लगता है |

        2.फ्रीजिंग पीरियड :                                                                          

इस पीरियड में कंधे की स्टिफनेस  बढती जाती है। इस स्टेज में दर्द के बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण धीरे-धीरे मरीज़ के कंधे की गतिविधियां कम हो जाती हैं। फ्रोज़न शोल्डर की दूसरी अवस्था में दर्द तो होता है, लेकिन असहनीय नहीं होता। फ्रोजेन शोल्डर की यह अवस्था लगभग 3-9 माह तक रहती है| फ्रोजेनशोल्डर की यह अवस्था संक्रमण कालीन/माध्यमिक/अवास्था-परिवर्तनिक/ फ्रीजिंग अवस्था कहलाती है|
   
       3. फ्रोजेन पीरियड  :                                                                       


फ्रोजेन शोल्डर की तीसरी अवस्था को फ्रोज़न पीरियड कहते हैं |यह अवस्था लगभग 9-14 माह तक रहती है | फ्रोजेन शोल्डर की इस अवस्था में  ऐसा लगता है कि दर्द में सुधार आ रहा है और कंधे की मूवमेंट भी थोडा सुधार आ जाता है, लेकिन कभी-कभी तेज  दर्द हो सकता है। इस स्टेज में सामान्यतः तभी दर्द होता है जब आपके कंधे में मूवमेंट हो |

       4.थाविंग पीरियड :                                                                     


फ्रोजेन शोल्डर की अंतिम अवस्था विगलन अवस्था(Thawing period) कहलाती है | यह अवस्था लगभग 12-15 माह तक रहती है | फ्रोजेन शोल्डर की इस अवस्था में कंधे के दर्द में चमत्कारिक परिवर्तन आता है अर्थात दर्द बहुत कम हो जाता है विशेषकर रात में , परन्तु आप कंधे को सीमित मात्रा में ही हिला सकते हैं| इस अवस्था के दौरान आप अपने सभी दैनिक कार्य (जैसे शर्ट पहनना, पेंट पहनना आदि ) को बिना अधिक पीड़ा उठाये सम्पन्न कर सकते हैं|   

       जांच और इलाज-                                                                             


कंधे के दर्द के लक्षणों और शारीरिक जांच के जरिये  डॉक्टर फ्रोजेन शोल्डर की पहचान करते हैं। प्राथमिक जांच में डॉक्टर कंधे और बांह के कुछ खास  हिस्सों पर दबाव देकर दर्द की तीव्रता को परखते हैं। इसके अलावा फ्रोजेन शोल्डर से पीड़ित मरीज को एक्स-रे या एमआरआइ जांच कराने की सलाह भी दी जाती है। इसके इलाज की प्रक्रिया समस्या की गंभीरता को देखते हुए शुरू की जाती है। फ्रोजेन शोल्डर के इलाज की शुरुआत में पहले पेनकिलर्स के जरिये दर्द को कम करने की कोशिश की जाती है, ताकि मरीज  कंधे को हिला-डुला सके। दर्द कम होने के बाद मरीज की फिजियोथेरेपी शुरू कराई जाती है, जिसमें हॉट  और कोल्ड कंप्रेशन  पैक्स भी दिया जाता है। इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद मरीज को कंधे की सूजन व दर्द में राहत मिलती है। कई बार मरीज  को स्टेरॉयड्स भी देने पडते हैं, हालांकि ऐसा अत्यंत गंभीर स्थिति में ही किया जाता है, क्योंकि इनसे नुकसान हो सकता है। कुछ स्थितियों में लोकल एनेस्थीसिया  देकर भी कंधे को मूव कराया जाता है। इसके अलावा सर्जिकल विकल्प भी आजमाए  जा सकते हैं।

        सावधानियां-                                                                                  


1.  दर्द को नजरअंदाज  न करें। यह लगातार हो तो डॉक्टर को दिखाएं।
2.  दर्द ज्यादा  हो तो हाथों को सिर के बराबर ऊंचाई पर रख कर सोएं। बांहों के नीचे एक-दो कुशंस रख कर सोने से आराम आता है।
3.  तीन से नौ महीने तक के समय को फ्रीजिंग पीरियड माना जाता है। इस दौरान फिजियोथेरेपी नहीं कराई जानी चाहिए। दर्द बढने पर डॉक्टर की सलाह से पेनकिलर्स  या इंजेक्शंस  लिए जा सकते हैं।
4.  छह महीने के बाद शोल्डर  फ्रोजन  पीरियड में जाता है। तब फिजियोथेरेपी कराई जानी चाहिए। 10 प्रतिशत मामलों में मरीज की हालत गंभीर हो सकती है, जिसका असर उसकी दिनचर्या और काम पर पडने लगता है। ऐसे में सर्जिकल प्रक्रिया अपनाई जा सकती है।
5.  कई बार फ्रोजन शोल्डर  और अन्य दर्द के लक्षण समान दिखते हैं। इसलिए एक्सपर्ट जांच आवश्यक है, ताकि सही कारण पता चल सके।

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