Apamarg (Achyranthes aspera) is an important medicinal plant : Medicinal use of Apamarg : सर्वसुलभ अपामार्ग / चिरचिटा / लटजीरा में है ढेर सारे चमत्कारी औषधीय गुण

                        Apamarg (Achyranthes aspera) is an important medicinal plant   
क्या आपने एक ऐसी औषधि के बारे में जाना है ? जिसे दोषों का संशोधन करने वाली,भूख बढानेवाली एवं असाध्य रोगों को ठीक करने वाली औषधि के रूप में जाना जाता है और यह औषधि प्रायः सम्पूर्ण भारत में पायी जाती है नाम है "अपामार्ग " |  मयूरक ,खरमंजरी,मर्कटी ,शिखरी अघाडा ,लटजीरा या चिरचिटा आदि नामों से प्रचलित यह  वनस्पति समस्त भारत में पायी जाती है ,इसके फूल हरे या गुलाबी कलियों से युक्त होते हैं तथा बीजों का आकार चावल क़ी तरह होता है !बाहर से देखने में इसका पौधा 1  से 3 फुट उंचा होता है ,शाखाएं पतली,पत्ते अंडाकार एक से पांच इंच लम्बे होते हैं ,फूल मंजरियों में पत्तों के बीच से निकलते हैं Iअपामार्ग क़ी क्षार का प्रयोग विभिन्न  आयुर्वेदिक औषधियों में बहुतायात से किया जाता है अपामार्ग कफ़-वात शामक  तथा कफ़-पित्त का संशोधन करने वाले गुणों से युक्त होता है Iइसे रेचन ,दीपन ,पाचन ,कृमिघ्न,रक्तशोधक ,रक्तवर्धक ,शोथहर,डायुरेटिक गुणों से युक्त माना जाता है I


अपामार्ग एक औषधीय वनस्पति है। इसका वैज्ञानिक नाम 'अचिरांथिस अस्पेरा' (ACHYRANTHES ASPERA) है। हिन्दी में इसे 'चिरचिटा', 'लटजीरा'  'चिरचिरा ' आदि नामों से जाना जाता है। अपामार्ग एक सर्वविदित क्षुपजातीय औषधि है। वर्षा के साथ ही यह अंकुरित होती है, ऋतु के अंत तक बढ़ती है तथा शीत ऋतु में पुष्प फलों से शोभित होती है। ग्रीष्म ऋतु की गर्मी में परिपक्व होकर फल शुष्क हो जाते हैं। इसके पुष्प हरी गुलाबी आभा युक्त तथा बीज चावल सदृश होते हैं, जिन्हें ताण्डूल कहते हैं। इसके कई सारे औषधीय गुण हैं जिनका वर्णन निम्न प्रकार है-

        मोटापा कम करने की अचूक औषधि :-                                                                            

ïअपामार्ग के बीज मोटापा कम करने की एक बेहद अचूक और सस्ती औषधि है| कुछ लोग अपना वजन कम करने के लिए डाइटिंग जैसी कई अन्य चीजें करते है और इसका उनकी सेहत पर काफी दुष्प्रभाव पड़ता है| यदि आप अपना वजन कामकरने की सोच रहे हैं तो एक बार अपामार्ग के बीजों का प्रयोग भी करके देखें | यह बिना साइड इफ़ेक्ट के आपकी भूख को नियंत्रित करके आपके शरीर में जमा चर्बी को पिघलायेगा |
ïअधिक भोजन करने के कारण जिनका वजन बढ़ रहा हो, उन्हें भूख कम करने के लिए अपामार्ग के बीजों को चावलों के समान भात या खीर बनाकर नियमित सेवन करना चाहिए। इसका प्रयोग करने से आपको प्राकृतिक तरीके से भूख कम लगेगी और शरीर की चर्बी धीरे-धीरे घटने भी लगेगी। इसके बीज चावल की तरह दिखते है , इन्हें तंडुल कहते है|  यदि स्वस्थ व्यक्ति इन्हें खा ले तो उसकी भूख -प्यास आदि समाप्त हो जाती है|  इसकी खीर उनके लिए वरदान है जो भयंकर मोटापे के बाद भी भूख को नियंत्रित नहीं कर पाते|      

        भस्मक रोग (भूख का बहुत ज्यादा लगना) :-                                                                



ïभस्मक रोग वह होता है जिसमें बहुत भूख लगती है और खाया हुआ अन्न भस्म हो जाता है परंतु शरीर कमजोर ही बना रहता है, उसमें अपामार्ग के बीजों का चूर्ण 3 ग्राम दिन में 2 बार लगभग एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे निश्चित रूप से भस्मक रोग मिट जाता है।
ïअपामार्ग के 5-10 ग्राम बीजों को पीसकर खीर बनाकर खिलाने से भस्मक रोग मिट जाता है। यह प्रयोग अधिक से अधिक 3 बार करने से रोग ठीक होता है। इसके 5-10ग्राम बीजों को खाने से अधिक भूख लगना बंद हो जाती है
ïअपामार्ग के बीजों को कूट छानकर, महीन चूर्ण करें तथा बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर, तीन-छ: ग्राम तक सुबह-शाम पानी के साथ प्रयोग करें। इससे भी भस्मक रोग ठीक हो जाता है।

        विष (जहर ) चढ़ जाने पर :-                                                                                   



ïजानवरों के काटने व सांप, बिच्छू, जहरीले कीड़ों के काटे स्थान परअपामार्ग के पत्तों का ताजा रस लगाने और पत्तों का रस 2 चम्मच की मात्रा में 2 बार पिलाने से विष का असर तुरंत घट जाता है और जलन तथा दर्द में आराम मिलता है। 
ïइसके पत्तों की पिसी हुई लुगदी को दंश के स्थान पर पट्टी से बांध देने से सूजन नहीं आती और दर्द दूर हो जाता है। सूजन चढ़ चुकी हो तो शीघ्र ही उतर जाती है|
ïततैया, बिच्छू तथा अन्य जहरीले कीड़ों के दंश पर इसके पत्ते का रस लगा देने से जहर उतर जाता है। काटे स्थान पर बाद में 8-10 पत्तों को पीसकर लुगदी बांध देते हैं। इससे व्रण (घाव) नहीं होता है|

        दांतों का दर्द होने पर :-                                                                                        



ïअपामार्ग की शाखा (डाली) से दातुन करने पर कभी-कभी होने वालेतेज दर्द खत्म हो जाते हैं तथा मसूढ़ों से खून का आना बंद हो जाता है।
ïअपामार्ग के फूलों की मंजरी को पीसकर नियमित रूप से दांतों पर मलकर मंजन करने से दांत मजबूत हो जाते हैं|
ïपत्तों के रस को दांतों के दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द में राहत मिलती है। तने या जड़ की दातुन करने से भी दांत मजबूत होते हैं एवं मुंह की दुर्गन्ध नष्ट होती है।

ïइसके 2-3 पत्तों के रस में रूई का फोया बनाकर दांतों में लगाने से दांतों के दर्द में लाभ पहुंचता है तथा पुरानी से पुरानी गुहा ( cavity ) को भरने में मदद करता है।
ïअपामार्ग की ताजी जड़ से प्रतिदिन दातून करने से दांत मोती की तरह चमकने लगते हैं। इससे दांतों का दर्द, दांतों का हिलना, मसूढ़ों की कमजोरी तथा मुंह की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।

        प्रसव सुगमता से होना :-                                                                                        



ïप्रसव में ज्यादा विलम्ब हो रहा हो और असहनीय पीड़ा महसूस हो रही हो, तो रविवार या पुष्य नक्षत्र वाले दिन जड़ सहित उखाड़ी सफेद अपामार्ग की जड़ काले कपड़े में बांधकर प्रसूता के गले में बांधने या कमर में बांधने से शीघ्र प्रसव हो जाता है। प्रसव के तुरंत बाद जड़ शरीर से अलग कर देनी चाहिए,अन्यथा गर्भाशय भी बाहर निकल सकता है। जड़ को पीसकर पेड़ू पर लेप लगाने से भी यही लाभ मिलता है। लाभ होने के बाद लेप पानी से साफ कर दें।
ïचिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ को स्त्री की योनि में रखने से बच्चा आसानी से पैदा होता है।
ïपाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग इनमें से किसी एक औषधि की जड़ के तैयार लेप कोनाभि, नाभि के नीचे के हिस्से पर लेप करने से प्रसव सुखपूर्वक होता है। प्रसव पीड़ा प्रारम्भ होने से पहले अपामार्ग के जड़ को एक धागे में बांधकर कमर में बांधने से प्रसव सुखपूर्वक होता है, परंतु प्रसव होते ही उसे तुरंत हटा लेना चाहिए।
ïअपामार्ग की जड़ तथा कलिहारी की जड़ को लेकर एक पोटली मे रखें। फिर स्त्री की कमर से पोटली को बांध दें। प्रसव आसानी से हो जाता है।

        खांसी होने पर  :-                                                                                               


ïअपामार्ग की जड़ में बलगमी खांसी और दमे को नाश करने का चामत्कारिक गुण हैं। इसके 8-10 सूखे पत्तों को बीड़ी या हुक्के में रखकर पीने से खांसी में लाभ होता है।

ïअपामार्ग के चूर्ण में शहद मिलाकर सुबह-शाम चटाने से बच्चों की श्वासनली तथा छातीमें जमा हुआ कफ दूर होकर बच्चों की खांसी दूर होती है।

ïखांसी बार-बार परेशान करती हो, कफ निकलने में कष्ट हो, कफ गाढ़ा व लेसदार हो गया हो, इस अवस्था में या न्यूमोनिया की अवस्था में आधा ग्राम अपामार्ग क्षार व आधा ग्राम शर्करा दोनों को 30 ग्राम गर्म पानी में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 7दिन में बहुत ही लाभ होता है।
ïश्वास रोग की तीव्रता में अपामार्ग की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम व 7 कालीमिर्च का चूर्ण,दोनों को सुबह-शाम ताजे पानी के साथ लेने से बहुत लाभ होता है।


        गर्भधारण करने के लिए :-                                                                                   



ïअनियमित मासिक धर्म या अधिक रक्तस्राव होने के कारण से जो स्त्रियां गर्भधारण नहीं कर पाती हैं, उन्हें ऋतुस्नान (मासिक-स्राव) के दिन से उत्तम भूमि में उत्पन्न अपामार्ग के 10 ग्राम पत्ते, या इसकी 10 ग्राम जड़ को गाय के125 ग्राम दूध के साथ पीस-छानकर 4 दिन तक सुबह, दोपहर और शाम को पिलाने से स्त्री गर्भधारण कर लेती है। यह प्रयोग यदि एक बार में सफल न हो तो अधिक से अधिक तीन बार करें।
ïअपामार्ग की जड़ और लक्ष्मण बूटी 40 ग्राम की मात्रा में बारीक पीस-छानकर रख लेते हैं। इसे गाय के 250 ग्राम कच्चे दूध के साथ सुबह के समय मासिक-धर्म समाप्त होने के बाद से लगभग एक सप्ताह तक सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से स्त्री गर्भधारण के योग्य हो जाती है।

        दमा या श्वास रोग :-                                                                                          


ïअपामार्ग के बीजों को चिलम में भरकर इसका धुंआ पीते हैं। इससे श्वास रोग में लाभ मिलता है।

ïअपामार्ग का चूर्ण लगभग आधा ग्राम को शहद के साथ भोजन के बाद दोनों समय देने से गले व फेफड़ों में जमा, रुका हुआ कफ निकल जाता है।
ïअपामार्ग (चिरचिटा) का क्षार 0.24 ग्राम की मात्रा में पान में रखकर खाने अथवा 1ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से छाती पर जमा कफ छूटकर श्वास रोग नष्ट हो जाता है।
ïचिरचिटा की जड़ को किसी लकड़ी की सहायता से खोद लेना चाहिए। ध्यान रहे कि जड़ में लोहा नहीं छूना चाहिए। इसे सुखाकर पीस लेते हैं। यह चूर्ण लगभग एक ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ खाएं इससे श्वास रोग दूर हो जाता है।
ïअपामार्ग (चिरचिटा) 1 किलो, बेरी की छाल 1 किलो, अरूस के पत्ते 1 किलो, गुड़ दो किलो, जवाखार 50 ग्राम सज्जीखार लगभग 50 ग्राम, नौसादर लगभग 125 ग्राम सभी को पीसकर एक किलो पानी में भरकर पकाते हैं। पांचकिलो के लगभग रह जाने पर इसे उतार लेते हैं। डिब्बे में भरकर मुंह बंद करके इसे 15 दिनों के लिए रख देते हैं फिर इसे छानकर सेवन करें। इसे 7 से 10 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करें। इससे श्वास,दमा रोग नष्ट हो जाता है।

        रक्तप्रदर के लिए :-                                                                                          



ïअपामार्ग के ताजे पत्ते लगभग 10 ग्राम, हरीदूब पांच ग्राम, दोनों को पीसकर, 60 ग्राम पानी में मिलाकर छान लें, तथागाय के दूध में 20 ग्राम या इच्छानुसार मिश्री मिलाकर सुबह-सुबह 7 दिन तक पिलाने से अत्यंत लाभ होता है। यह प्रयोग रोग ठीक होने तक नियमित करें, इससे निश्चित रूप से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है। यदि गर्भाशय में गांठ की वजह से खून का बहना होता हो तो भी गांठ भी इससे घुल जाता है।

ï10 ग्रामअपामार्ग के पत्ते, 5 दाने कालीमिर्च, 3 ग्राम गूलर के पत्ते को पीसकर चावलों के धोवन के पानी के साथ सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।


        विसूचिका (हैजा) होने पर :-                                                                              


ïअपामार्ग की जड़ के चूर्ण को 2 से 3 ग्राम तक दिन में 2-3 बार शीतल पानी के साथ सेवन करने से तुरंत ही विसूचिका नष्ट होती है। अपामार्ग के 4-5पत्तों का रस निकालकर थोड़ा जल व मिश्री मिलाकर देने से विसूचिका में अच्छा लाभमिलता है।

ïअपामार्ग (चिरचिटा) की जड़, 4 कालीमिर्च, 4 तुलसी के पत्तें। इन सबको पीसकर तथा पानी में घोलकर इतनी ही मात्रा में बार-बार पिलाएं।
ïकंजाकी जड़, अपामार्ग की जड़, नीम की अंतरछाल, गिलोय, कुड़ा की छाल-इन सबको समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनायें। शीतल होने पर 10-10 ग्राम की मात्रा में 3 दिन सेवन कराने से हैजा का प्रभाव शांत हो जाता है।


        बवासीर में सहायक :-                                                                                   


ïअपामार्ग के बीजों को पीसकर उनका चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शामचावलों के धोवन के साथ देने से खूनी बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है।

ïअपामार्ग की 6 पत्तियां, कालीमिर्च 5 पीस को जल के साथ पीस छानकर सुबह-शाम सेवनकरने से बवासीर में लाभ हो जाता है और उसमें बहने वाला रक्त रुक जाता है। 
ïपित्तज या कफ युक्त खूनी बवासीर पर अपामार्ग की 10 से 20 ग्राम जड़ को चावल केधोवन के साथ पीस-छानकर 2 चम्मच शहद मिलाकर पिलाना गुणकारी हैं।
ïअपामार्ग की जड़, तना, पत्ता, फल और फूल को मिलाकर काढ़ा बनायें और चावल के धोवन अथवा दूध के साथ पीयें। इससे खूनी बवासीर में खून का गिरना बंद हो जाता है।
ïअपामार्ग का रस निकालकर या इसके 3 ग्राम बीज का चूर्ण बनाकर चावल के धोवन (पानी) के साथ पीने से बवासीर में खून का निकलना बंद हो जाता है।

        उदर विकार (पेट के रोग) में :-                                                                       



ïअपामार्ग पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) को 20ग्रामलेकर 400 ग्राम पानी में पकायें, जब चौथाई शेष रह जाए तब उसमें लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग नौसादर चूर्ण तथा एक ग्राम कालीमिर्च चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट का दर्द दूर हो जाता है। 

ïपंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का काढ़ा 50-60 ग्राम भोजन के पूर्व सेवन से पाचन रस में वृद्धि होकर दर्द कम होता है। भोजन के दो से तीन घंटे पश्चात पंचांग (जड़,तना, फल, फूल, पत्ती) का गर्म-गर्म 50-60 ग्राम काढ़ा पीने से अम्लता कम होती है तथा श्लेष्मा का शमन होता है। यकृत पर अच्छा प्रभाव होकर पित्तस्राव उचित मात्रा में होता है, जिस कारण पित्त की पथरी तथा बवासीर में लाभ होता है।


        अपामार्ग के कुछ अन्य एवं अचूक लाभ :-                                                         


स्वप्नदोष में :- अपामार्ग की जड़ का चूर्ण और मिश्री बराबर की मात्रा में पीसकर रख लें।1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार 1-2 हफ्ते तक सेवन करें।
मुंह के छाले होने पर :- अपामार्ग के पत्तों का रस छालों पर लगाएं।
शीघ्रपतन के लिए :- अपामार्ग की जड़ को अच्छी तरह धोकर सुखा लें। इसका चूर्ण बनाकर 2चम्मच की मात्रा में लेकर 1 चम्मच शहद मिला लें। इसे 1 कप ठंडे दूध के साथ नियमित रूप से कुछ हफ्तों तक सेवन करने से वीर्य बढ़ता है।
संतान प्राप्ति के लिए :- अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित रूप से 21 दिन तक सेवन करने से गर्मधारण होताहै। दूसरे प्रयोग के रूप में ताजे पत्तों के 2 चम्मच रस को 1 कप दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित सेवन से भी गर्भ स्थिति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
कमजोरी :- अपामार्ग के बीजों को भूनकर इसमें बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर पीस लें। 1 कप दूध के साथ 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करने से शरीर में पुष्टता आती है।
सिर में दर्द :- अपामार्ग की जड़ को पानी में घिसकर बनाए लेप को मस्तक पर लगाने से सिर दर्द दूर होता है।
मलेरिया से बचाव :- अपामार्ग के पत्ते और कालीमिर्च बराबर की मात्रा में लेकर पीसलें, फिर इसमें थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर मटर के दानों के बराबर की गोलियां तैयार कर लें। जब मलेरिया फैल रहा हो, उन दिनों एक-एक गोली सुबह-शाम भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करने से इस ज्वर का शरीर पर आक्रमण नहीं होगा। इन गोलियों का दो-चार दिन सेवन पर्याप्त होता है।
गंजापन :- सरसों के तेल में अपामार्ग के पत्तों को जलाकर मसल लें और मलहम बना लें। इसे गंजे स्थानों पर नियमित रूप से लेप करते रहने से पुन: बाल उगने की संभावना होगी।
खुजली :- अपामार्ग के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल और फल) को पानी में उबालकरकाढ़ा तैयार करें और इससे स्नान करें। नियमित रूप से स्नान करते रहने से कुछ ही दिनों में खुजली दूर जाएगी।
आधाशीशी (आधे सिर में दर्द) :- इसके बीजों के चूर्ण को सूंघने मात्र से ही आधाशीशी,मस्तक की जड़ता में आराम मिलता है। इस चूर्ण को सुंघाने से मस्तक के अंदर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के द्वारा निकल जाता है और वहां पर पैदा हुए कीड़े भी झड़ जाते हैं।
बहरापन :- अपामार्ग की साफ धोई हुई जड़ का रस निकालकर उसमें बराबर मात्रा में तिल को मिलाकर आग में पकायें। जब तेल मात्र शेष रह जाये तब छानकर शीशी में रख लें। इस तेल की 2-3 बूंद गर्म करके हर रोज कान में डालने से कान का बहरापनदूर होता है।
आंखों के रोग :- 
आंख की फूली में अपामार्ग की जड़ के 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच शहद के साथ मिलाकर दो-दो बूंद आंख में डालने से लाभ होता है।
धुंधला दिखाई देना, आंखों का दर्द, आंखों से पानी बहना, आंखों की लालिमा, फूली,रतौंधी आदि विकारों में इसकी स्वच्छ जड़ को साफ तांबे के बरतन में, थोड़ा-सा सेंधानमक मिले हुए दही के पानी के साथ घिसकर अंजन रूप में लगाने से लाभ होता है।
वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द) :- अपामार्ग (चिरचिटा) की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में घोलकर पिलाने से बड़ा लाभ होता है। यह औषधि मूत्राशय की पथरी को टुकड़े-टुकड़े करके निकाल देती है। गुर्दे के दर्द के लिए यह प्रधान औषधि है।
योनि में दर्द होने पर :- अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को पीसकर रस निकालकर रूई कोभिगोकर योनि में रखने से योनिशूल और मासिक धर्म की रुकावट मिटती है।

व्रण (घावों) पर :- घावों विशेषकर दूषित घावों में अपामार्ग का रस मलहम के रूप में लगाने से घाव भरने लगता है तथा घाव पकने का भय नहीं रहता है।
संधिशोथ (जोड़ों की सूजन) :- जोड़ों की सूजन एवं दर्द में अपामार्ग के 10-12 पत्तों को पीसकर गर्म करके बांधने से लाभ होता है। संधिशोथ व दूषित फोड़े फुन्सी या गांठ वाली जगह पर पत्ते पीसकर लेप लगाने से गांठ धीरे-धीरे छूट जाती है।
बुखार में :- अपामार्ग (चिरचिटा) के 10-20 पत्तों को 5-10 कालीमिर्च और 5-10 ग्रामलहसुन के साथ पीसकर 5 गोली बनाकर 1-1 गोली बुखार आने से 2 घंटे पहले देने से सर्दी से आने वाला बुखार छूटता है।
श्वासनली में सूजन (ब्रोंकाइटिस) :- जीर्ण कफ विकारों और वायु प्रणाली दोषों में अपामार्ग (चिरचिटा) की क्षार, पिप्पली, अतीस, कुपील, घी और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में पूर्ण लाभ मिलता है।
        अपामार्ग का सेवन करते वक्त बरतें ये सावधानियां :-                                                       



ïअपामार्ग का प्रयोग ज्यादा मात्रा में नहीं करना चाहिए | यदि आप इसका ज्यादा मात्रा में उपयोग करेंगे तो आपको उल्टियां होने लगेंगी |
ïअपामार्ग का सेवन किसी गर्भवती स्त्री को नहीं करना चाहिए क्योंकि यह एक गर्भनिरोधक पौधा होता है | अतः यदि कोई गर्भवती स्त्री इसका सेवन करती है तो उसके गर्भ के गिरने की संभावना विकसित हो जाती है |
ïबच्चों को अपामार्ग एक उचित एवं निर्धारित मात्रा में ही दिया जाना चाहिए|

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