Holy Basil (Tulsi) and it's amazing Health Benefits................(तुलसी के दैवीय एवं औषधीय गुण: -असाध्य रोगों को जड़ से खत्म करता है ये तुलसी का पौधा)
Holy Basil (Tulsi) and it's amazing Health Benefits
असाध्य रोगों को जड़ से खत्म करता है ये तुलसी का पौधा

तुलसी सभी स्थानों पर पाई जाती है। इसे लोग घरों, बागों व मंदिरों के आस-पास लगाते हैं लेकिन यह जंगलों में अपने आप ही उग आती है। तुलसी की अनेक किस्में होती हैं परन्तु गुण और धर्म की दृष्टि से काली तुलसी सबसे अधिक महत्वपूर्ण व उत्तम होती है। तुलसी को हमारे घरों में देवी का रूप माना जाता है और यह हर प्रकार से पवित्र है। ऐसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी लगाई जाती है उस घर में भगवान वास करते हैं। तुलसी एक ऐसी वनस्पति है जो धार्मिक हिन्दू समुदाय में बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। तुलसी केवल हमारी आस्था का प्रतीक भर नहीं है। इस पौधे में पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तुलसी को महत्वपूर्ण माना गया है।
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बच्चे, बूढे, औरते और आदमी सभी तुलसी के सेवन से लाभ उठा सकते हैं। तुलसी के पौधे में प्रबल विद्युत शक्ति होती है जो उसके चारों तरफ 200 गज तक प्रवाहित होती रहती है। जिसे घर में तुलसी का हरा पौधा होता है उस घर में कभी वज्रपात (आकाश से गिरने वाली बिजली) नहीं होता है। अधिकांश हिंदू परिवारों में तुलसी का पौधा लगाने की परंपरा बहुत पुराने समय से चली आ रही है। तुलसी को देवी मां का रूप माना जाता है। कभी-कभी तुलसी का पौधा कुछ कारणों से सुख जाता है। सूखे हुए तुलसी के पौधे को घर में नहीं रखना चाहिए बल्कि इसे किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। एक पौधा सूख जाने के बाद तुरंत ही दूसरा तुलसी का पौधा लगा लेना चाहिए। सुखा हुआ तुलसी का पौधा घर में रखना अशुभ माना जाता है। इससे विपरित परिणाम भी प्राप्त हो सकते हैं। घर की बरकत पर बुरा असर पड़ सकता है। इसी वजह से घर में हमेशा पूरी तरह स्वस्थ तुलसी का पौधा ही लगाया जाना चाहिए।
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1- मान्यता है कि तुलसी का पौधा घर में होने से घर वालों को बुरी नजर प्रभावित नहीं कर पाती और अन्य बुराइयां भी घर और घरवालों से दूर ही रहती हैं।
2- तुलसी का पौधा घर का वातावरण पूरी तरह पवित्र और कीटाणुओं से मुक्त रखता है। इसके साथ ही देवी-देवताओं की विशेष कृपा भी उस घर पर बनी रहती है।
2- तुलसी का पौधा घर का वातावरण पूरी तरह पवित्र और कीटाणुओं से मुक्त रखता है। इसके साथ ही देवी-देवताओं की विशेष कृपा भी उस घर पर बनी रहती है।
3- कार्तिक माह में विष्णु जी का पूजन तुलसी दल से करने का बडा़ ही माहात्म्य है। कार्तिक माह में यदि तुलसी विवाह किया जाए तो कन्यादान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।
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पदम पुराण में कहा गया है की तुलसी जी के दर्शन मात्र से सम्पूर्ण पापों की राशि नष्ट हो जाती है,उनके स्पर्श से शरीर पवित्र हो जाता है,उन्हें प्रणाम करने से रोग नष्ट हो जाते है,सींचने से मृत्यु दूर भाग जाती है,तुलसी जी का वृक्ष लगाने से भगवान की सन्निधि प्राप्त होती है,और उन्हें भगवान के चरणों में चढाने से मोक्ष रूप महान फल की प्राप्ति होती है। अंत काल के समय ,तुलसीदल या आमलकी को मस्तक या देह पर रखने से नरक का द्वार बंद हो जाता है।
तुलसी का धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन विज्ञान के दृष्टिकोण से भी तुलसी एक औषधि है। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बुटि के समान माना जाता है।तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। तुलसी का पौधा घर में रहने से उसकी सुगंध वातावरण को पवित्र बनाती है और हवा में मौजूद बीमारी के बैक्टेरिया आदि को नष्ट कर देती है।
तुलसी के पौधे का रंग रूप एवं आकार –
तुलसी के पौधे का रंग साधारणतः हरा और पीला होता है। तुलसी स्वाद में तीखी होती है | तुलसी के पौधे अक्सर घरों, बागों एवं जंगलों आदि में अधिकतर पाए जाते हैं। तुलसी का पौधा देखने में झाड़ीदार होता है तथा उसकी लम्बाई 1 से 4 फुट ऊंची होती है । इसके पत्ते आकार में गोल लम्बे और छोटे-छोटे होते हैं। आमतौर पर तुलसी की पत्तियां हरी व काली होती है। इसकी पत्तियां 1 से 2 इंच लंबे अंडाकार, आयताकार, ग्रंथियुक्त व तीव्र सुगंध वाली होती है। इसमें गोलाकार, बैंगनी या लाल आभा लिए मंजरी या बाल (फूल) लगते हैं। तुलसी के पौधों में फूल के स्थान बाल निकलती है जिसमें बीज बनते हैं हैं। तुलसी के पौधे आमतौर पर मार्च-जून में लगाए जाते हैं और सितम्बर-अक्टूबर में पौधे सुगंधित मंजरियों से भर जाते हैं। शीतकाल में इसके फूल आते हैं जो बाद में बीज के रूप में पकते हैं।
तुलसी के पौधे के प्रकार (TYPES OF HOLY BASIL)-
औषधि के लिए हमेशा तुलसी के पौधे का ही प्रयोग किया जाता है। तुलसी की दो प्रजातियाँ औषधि के रूप में प्रयोग होती हैं | दोनों प्रकार की तुलसी गुणधर्मों में समान होती हैं परन्तु विद्वानों का मत है कि हरी तुलसी के अपेक्षा काली तुलसी अधिक लाभकारी होती है। काली तुलसी काफ को नष्ट करने में सहायक होती है और हरी तुलसी बुखार को समाप्त करने के लिए प्रयोग की जाती है | भारतवर्ष में तुलसी की दो प्रजातियों का प्रयोग औषधीय और धार्मिक रूप में करते हैं -
रामा तुलसी(RAMA TULSI)-
रामा तुलसी के पौधे की पत्तियां हरे रंग की होती है, और इस प्रकार के तुलसी के पौधे ही ज्यादातर घरों में पाए जाते है।
श्यामा तुलसी (SHYAMA TULSI)-
इस प्रकार के तुलसी के पौधे की पत्तियां काले रंग की होती है और श्यामा तुलसी का पौधा ही पूजा के लिए ज्यादा शुभ माना जाता है।
इनके अलावा तुलसी की कई प्रजातियाँ पूरे विश्वभर में पायी जाती हैं -
õ राम तुलसी या वैजयन्ती(ऑसीमम ग्रेटिसिमम – Ocimum Gratissimum)
õ श्याम तुलसी (ऑसीमम टेनुइफ़्लोरुम – Ocimum Tenuiflorum)
õ श्वेत तुलसी या श्वेत सुरसा (ऑसीमम सैक्टम – Ocimum Sanctum)
õ वन तुलसी(ऑसीमम ग्रेटिसिमम – Ocimum Gratissimum)
õ नीम्बू तुलसी (ऑसीमम कित्रिओदोरुम – Ocimum Citriodorum)
õ काली या गंभीरा या मामरी या अरण्य तुलसी (ऑसीमम अमेरिकन – Ocimum Americanum)
õ मीठी या मरुआ या मुन्जरिकी या मुरसा तुलसी (ऑसीमम वेसिलिकम – Ocimum Basilicum)
õ कर्पूर तुलसी(ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम – Ocimum Kilimandscharicum)
õ बैगनी तुलसी (ऑसीमम पर्परास्संस -ocimum purpurascens)
रासायनिक संघटन (CHEMICAL COMPOSITION):-
तुलसी में अनेक जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। अभी भी पूरी तरह से इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है। प्रमुख सक्रिय तत्व हैं एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल जिसकी मात्रा संगठन स्थान व समय के अनुसार बदलते रहते हैं। ०.१ से ०.३ प्रतिशत तक तेल पाया जाना सामान्य बात है। 'वैल्थ ऑफ इण्डिया' के अनुसार "इस तेल में लगभग ७१ प्रतिशत यूजीनॉल, बीस प्रतिशत यूजीनॉल मिथाइल ईथर तथा तीन प्रतिशत कार्वाकोल होता है। श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है तथा इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। तेल के अतिरिक्त पत्रों में लगभग ८३ मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन सी एवं २.५ मिलीग्राम प्रतिशत कैरीटीन होता है। तुलसी बीजों में हरे पीले रंग का तेल लगभग १७.८ प्रतिशत की मात्रा में पाया जाता है। इसके घटक हैं कुछ सीटोस्टेरॉल, अनेकों वसा अम्ल मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल। तेल के अलावा बीजों में श्लेष्मक प्रचुर मात्रा में होता है। इस म्युसिलेज के प्रमुख घटक हैं-पेन्टोस, हेक्जा यूरोनिक अम्ल और राख। राख लगभग ०.२ प्रतिशत होती है।"
तुलसी के पौधे का महत्व(IMPORTENCE OF HOLY BASIL PLANT)-
तुलसी का पौधा यूं ही हर घर-आंगन की शोभा नहीं बनता। घरों तथा
मंदिरों में तो इसका पौधा अनिवार्य माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से तो इसकी
उपयोगिता है ही, स्वास्थ्य रक्षक के रूप में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी गंध
युक्त हवा जहां-जहां जाती
है, वहां का वायुमण्डल शुद्ध हो जाता है। इसे दूषित पानी एवं गंदगी से बचाना
जरूरी होता है। धार्मिक दृष्टि से तुलसी पर पानी चढ़ाना नित्य नेम का हिस्सा माना
जाता है। विद्वानों का मत है कि जल चढ़ाते समय इसका स्पर्श और गंध रोग पैदा करने
वाले जीवाणुओं को नष्ट करने में सक्षम है। वैसे तो इसकी कई जातियां हैं, लेकिन
श्वेत और श्याम या रामा तुलसी और श्यामा तुलसी ही प्रमुख हैं। पहचान के लिए श्वेत
के पत्ते तथा शाखाएं श्वेताय (हल्की सफेदी) तथा कृष्णा के कृष्णाय (हल्का कालापन) लिये होते
हैं। अतः विद्वानों के अनुसार तुलसी अपने में सम्पूर्ण पौधा है जिसका
भारतबर्ष में महत्वपूर्ण स्थान है तुलसी के दैवीय एवं औषधीय महत्वों का विवरण निम्नलिखित है -
1- आयुर्वेद के अनुसार :(ACCORDING TO AYURVEDAS)-
तुलसी को संजीवनी बूटी भी कहा जाता है। क्योकि तुलसी के पौधे
में अनेको औषधीय गुण पाये जाते हैं। तुलसी का सेवन कफ द्वारा पैदा होने वाले रोगों
से बचाने वाला और शरीर कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला माना गया हैं।
इसलिए तुलसी के पत्तों का सेवन करना लाभकारी होता हैं। आयुर्वेद के अनुसार तुलसी, हल्की, गर्म, तीखी कटु, रूखी, पाचन शक्ति को बढ़ाने वाली होती है। तुलसी कीडे़ को नष्ट करने वाली,
दुर्गंध को दूर करने वाली, कफ को निकालने वाली
तथा वायु को नष्ट करने वाली होती है। यह पसली के दर्द को मिटाने वाली, हृदय के लिए लाभकारी, मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में
कष्ट होना) को ठीक करने वाली, विष के दोषों को नष्ट करने
वाली और त्वचा रोग को समाप्त करने वाली होती है। यह हिचकी, खांसी,
दमा, सिर दर्द, मिर्गी,
पेट के कीड़े, विष विकार, अरुचि (भोजन करने की इच्छा न करना), खून की खराबी,
कमर दर्द, मुंह व सांस की बदबू एवं विषम ज्वर
आदि को दूर करती है। इससे वीर्य बढ़ता है, उल्टी ठीक होती है,
पुराना कब्ज दूर होता है, घाव ठीक होता है,
सूजन पचती है, जोड़ों का दर्द, मूत्र की जलन, पेशाब करने में दर्द, कुष्ठ एवं कमजोरी आदि रोग ठीक होता है। यह जीवाणु नष्ट करती है और गर्भ को
रोकती है।
2- यूनानी चिकित्सकों के अनुसार(ACCORDING TO GREECE DOCTORS)-
यूनानी चिकित्सकों के अनुसार तुलसी बल बढ़ाने वाली, हृदयोत्तेजक, सूजन को पचाने वाली एवं सिर दर्द को ठीक करने वाली होती है। तुलसी के पत्ते बेहोशी में सुंघाने से बेहोशी दूर होती है। इसके पत्ते चबाने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है। तुलसी के सेवन से सूखी खांसी दूर होती है और वीर्य गाढ़ा होता है। इसके बीज दस्त में आंव व खून आना बंद करता है।
3- हिन्दू धर्म के मतानुसार (ACCORDING TO HINDUSM)-

हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे को पवित्र
माना जाता है। माना जाता है कि जिस घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगा होता हैं उस
घर से कलह और दरिद्रता दूर होजाते हैं। धर्मग्रंथों में तुलसी को हरि प्रिया कहा गया
हैं। पुराणों में भी भगवान विष्णु और तुलसी के विवाह का वर्णन मिलता हैं। हिंदू धर्म में तुलसी को अत्यधिक महत्व दिया गया
है। तुलसी की पुजा सभी घरों में की जाती है और इसी लिए तुलसी घर-घर में लगाई जाती
है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस घर में तुलसी के पौधे होते हैं वहां मच्छर, सांप, बिच्छू व हानिकारक कीड़े आदि नहीं उत्पन्न होते। ऐसा माना जाता है तुलसी की पत्तियां हाथ जोड़कर या मन में तुलसी
के प्रति सम्मान और श्रद्धा रखते हुए जितनी आवश्यकता हो उतनी ही तोड़नी चाहिए। इसकी
पत्तियां तोड़ते समय ध्यान रखें कि मंजरी के आसपास की पत्तियां तोड़ने से पौधा और
जल्दी बढ़ता है। अत: मंजरी के पास की पत्तियां ही तोड़ना चाहिए। पूर्णिमा, अमावस्या, संक्रान्तिकाल, कार्तिक, द्वादशी,
रविवार, शाम के समय, रात
एवं दिन के बारह बजे के आसपास तुलसी की पत्तियां नहीं तोड़नी चाहिए। तेल की मालिश
कराने के बाद बिना नहाए, स्त्रियों के मासिक धर्म के समय
अथवा किसी प्रकार की अन्य अशुद्धता के समय तुलसी के पौधे को नहीं छूना चाहिए
क्योंकि इससे पौधे जल्दी सूख जाते हैं। यदि पत्तों में छेद दिखाई देने लगे तो कंडे
(छाणे) की राख ऊपर छिड़क देने से उत्तम फल मिलता है।
4- शास्त्रों के अनुसार (ACCORDING TO SHASTRA)-
हमारे शास्त्रों में तुलसी के पत्तों का
उचित तरीके से सेवन करने का वर्णन किया गया हैं। जिसका पालन न करने पर यही तुलसी के
पत्ते का सेवन हानिकारक भी हो सकते हैं। तुलसी सेवन का शास्त्रोक्त तरीका हैं कि जब
भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें,
उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लेने चाहिये। इसका विज्ञान कारण हैं, कि
तुलसी के पत्तों में पारा (धातु) के अंश
होते हैं। जिस कारण तुलसी चबाने पर बाहर निकलकर दांतों कि सुरक्षा परत को नुकसान
पहुंचाते हैं। जिससे दंत और मुख रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। यदि तुलसी के पत्ते
चबाकर खाने कि आत्याधिक आवश्यकता होतो, तुलसी सेवन के पश्चयात
तुरंत कुल्ला कर लें। क्योकि इसका अम्ल दांतों के एनेमल को खराब कर देता हैं। इसलिए ध्यान रहे कि विष्णुप्रिया की आराधना कर
धर्म लाभ तो पाएं लेकिन उसका सेवन सावधानी से कर स्वास्थ्य लाभ भी पाएं।
5- धार्मिक मतानुसार(SPRITUAL IMPORTENCE)-

देव और दानवों द्वारा किए गए समुद्र
मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका, उसी से तुलसी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मदेव ने
उसे भगवान विष्णु को सौंपा। भगवान विष्णु, योगेश्वर कृष्ण और
पांडुरंग (श्री बालाजी) की पूजन के समय तुलसी का हार उनकी प्रतिमाओं को अर्पण किया
जाता है। तुलसी को दैवी गुणों से
अभिपूरित मानते हुए इसके विषय में अध्यात्म ग्रंथों में काफ़ी कुछ लिखा गया है। तुलसी
औषधियों का खान हैं। इस कारण तुलसी को अथर्ववेद में महाऔषधि की संज्ञा दी गई हैं।इसे
संस्कृत में हरिप्रिया कहते हैं। इस औषधि की उत्पत्ति से भगवान् विष्णु का मनः संताप
दूर हुआ इसी कारण यह नाम इसे दिया गया है। ऐसा विश्वास है कि तुलसी की जड़ में सभी
तीर्थ,
मध्य में सभी देवि-देवियाँ और ऊपरी शाखाओं में सभी वेद स्थित हैं।
6- वैज्ञानिकों के अनुसार (ACCORDING TO
SCIENCE)-
वैज्ञानिकों द्वारा तुलसी का रासायनिक विश्लेषण करने पर पता
चलता है कि इसके बीजों में हरे व पीले रंग का एक स्थिर तेल 17.8 प्रतिशत की मात्रा
में होता है। इसके अतिरिक्त बीजों से निकलने वाले स्थिर तेल में कुछ सीटोस्टेराल,
स्टीयरिक, लिनोलक, पामिटिक,
लिनोलेनिक और ओलिक वसा अम्ल भी होते हैं। इसमें ग्लाइकोसाइड,
टैनिन, सेवानिन और एल्केलाइड़स भी होते हैं। तुलसी
के पत्ते व मंजरी से लौंग के समान गंधवाले पीले व हरे रंग के उड़नशील तेल 0.1
से 0.3 प्रतिशत की मात्रा में पाए जाते हैं।
इसमें यूजीनाल 71 प्रतिशत, यूजीनाल
मिथाइल ईथर 20 प्रतिशत तथा कार्वाकोल 3
प्रतिशत होता है। इसके पत्तों में थोड़ी मात्रा में `केरोटीन`
और विटामिन `सी` भी होती
है।
7- तुलसी का अध्यात्मिक महत्व(SPRITUAL
IMPORTENCE)-
तुलसी का पौधा हमारे लिए
आध्यात्मिक महत्व का पौधा है जिस घर में इसका वास होता है वहा आध्यात्मिक उन्नति
के साथ सुख-शांति एवं आर्थिक समृद्धता स्वतः आ जाती है। वातावारण में स्वच्छता एवं
शुद्धता, प्रदूषण का शमन, घर परिवार में आरोग्य की जड़ें मज़बूत करने, श्रद्धा
तत्व को जीवित करने जैसे अनेकों लाभ इसके हैं। तुलसी के नियमित सेवन से
सौभाग्यशालिता के साथ ही सोच में पवित्रता, मन में एकाग्रता
आती है और क्रोध पर पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। आलस्य दूर होकर शरीर में दिनभर
फूर्ती बनी रहती है। तुलसी की सूक्ष्म व कारण शक्ति अद्वितीय है। यह आत्मोन्नति का
पथ प्रशस्त करती है तथा गुणों की दृष्टि से संजीवनी बूटी है। तुलसी को प्रत्यक्ष
देव मानने और मंदिरों एवं घरों में उसे लगाने, पूजा करने के
पीछे संभवतः यही कारण है कि यह सर्व दोष निवारक औषधि सर्व सुलभ तथा सर्वोपयोगी है।
धार्मिक धारणा है कि तुलसी की सेवापूजा व आराधना से व्यक्ति स्वस्थ एवं सुखी रहता
है। अनेक भारतीय हर रोग में तुलसीदल-ग्रहण करते हुए इसे दैवीय गुणों से युक्त सौ
रोगों की एक दवा मानते हैं। गले में तुलसी-काष्ठ की माला पहनते हैं।
8- पारंपरिक महत्व (TRADITIONAL IMPORTANCE)-
माना जाता है कि तुलसी के संसर्ग से वायु सुवासित व शुद्ध रहती
है। प्राचीन ग्रंथों में इसे अकाल मृत्यु से बचानेवाला और सभी रोगों को नष्ट
करनेवाला कहा गया है। मृत्यु के समय तुलसी मिश्रित गंगाजल पिलाया जाता है जिससे
आत्मा पवित्र होकर सुख-शांति से परलोक को प्राप्त हो। इसके स्वास्थ्य संबंधी गुणों
के कारण लोग श्रद्धापूर्वक तुलसी की अर्चना करते हैं, कार्तिक मास में
तुलसी की आरती एवं परिकर्मा के साथ-साथ उसका विवाह किया जाता है। तुलसी को संस्कृत
भाषा में ग्राम्या व सुलभा कहा गया है। इसका कारण यह है कि यह सभी गाँवों में
सुगमतापूर्वक उगाई जा सकती है और सर्वत्र सुलभ है |तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है तथा पूजन करना मोक्षदायक। देवपूजा और श्राद्धकर्म में तुलसी आवश्यक है। तुलसी पत्र से पूजा करने से व्रत, यज्ञ, जप, होम, हवन करने का पुण्य प्राप्त होता है। ऐसा कहा जाता है, जिनके मृत शरीर का दहन तुलसी की लकड़ी की अग्नि से क्रिया जाता है, वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं, उनका पुनर्जन्म नहीं होता। प्राणी के अंत समय में मृत शैया पर पड़े रोगी को तुलसी दलयुक्त जल सेवन कराये जाने के विधान में तुलसी की शुद्धता ही मानी जाती है और उस व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त हो, ऐसा माना जाता है।
9- आधुनिक शोधानुसार( MORDERN RESEARCHES)-
विदेशी चिकित्सक इन दिनों भारतीय जड़ी बूटियों पर व्यापक
अनुसंधान कर रहे हैं। अमरीका के मैस्साच्युसेट्स संस्थान सहित विश्व के अनेक शोध
संस्थानों में जड़ी-बूटियों पर शोध कार्य चल रहे हैं। अमरीका के नेशनल कैंसर
रिसर्च इंस्टीट्यूट में कैंसर एवं एड्स के उपचार में कारगर भारतीय जड़ी-बूटियों को
व्यापक पैमाने पर परखा जा रहा है। विशेष रूप से तुलसी में एड्स निवारक तत्वों की
खोज जारी है। मानस रोगों के संदर्भ में भी इन पर परीक्षण चल रहे हैं। आयुर्वेदिक
जड़ी बूटियों पर पूरे विश्व का रुझान इनके दुष्प्रभाव मुक्त होने की विशेषता के
कारण बढ़ता जा रहा है। एक अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो गई है कि अब तुलसी के पत्तों
से तैयार किए गए पेस्ट का इस्तेमाल कैंसर से पीडित रोगियों के इलाज में किया
जाएगा। दरअसल वैज्ञानिकों को "रेडिएशन-थैरेपी" में तुलसी के पेस्ट के
जरिए विकिरण के प्रभाव को कम करने में सफलता हासिल हुई है। यह निष्कर्ष पिछले दस
वर्षों के दौरान भारत में ही मणिपाल स्थित कस्तूरबा मेडिकल कालेज में चूहों पर किए
गए परीक्षणों के आधार पर निकाला गया। कैंसर के इलाज में रेडिएशन के प्रभाव को कम
करने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला "एम्मी फास्टिन" महँगा तो है ही, साथ ही इसके इस्तेमाल
से लो- ब्लड प्रेशर और उल्टियाँ होने की शिकायतें भी देखी गई हैं। जबकि तुलसी
केपेस्ट के प्रयोग से ऐसे दुष्प्रभाव सामने नहीं आते।
तुलसी के घरेलू उपयोग(HOME REMEDIES OF HOLY BASIL)-
पेट-दर्द,
और उदर रोग से पीड़ित होने पर तुलसी के पत्तों का रस और अदरक का रस
बराबर मात्रा में मिलाकर गर्म करके सेवन करने से कष्ट दूर हो जाता है। तुलसी के
साथ में शक्कर अथवा शहद मिलकर खाने से चक्कर आना बंद हो जाता है। सिरदर्द में
तुलसी के सूखे पत्तों का चूर्ण कपडे में बाँधकर सूँघने से फायदा होता है। वन तुलसी
का फूल और काली मिर्च को जलते कोयले पर डालकर उसका धुआँ सूँघने से सिर का कठिन
दर्द ठीक होते देखा गया है। केवल तुलसी पत्र को पीस कर लेप करने से सिरदर्द और
चर्म रोग व मुहाँसों में लाभ होता है। छोटे बच्चे को अफरा अथवा पेट फूलने की
शिकायत होने पर तुलसी और पान के पत्ते का रस बराबर मात्रा में मिलाकर इसकी कुछ
बूँदें दिन में कई बार देने से आराम मिलता है। दाँत निकलते समय बच्चों के दस्त से
छुटकारा पाने के लिये भी तुलसी के पत्ते का चूर्ण शहद में मिलाकर सेवन कराने से
लाभ होता है। सर्दी और खाँसी और दमे में भी तुलसी पत्र का रस उपयोगी पाया गया है।
तुलसी के प्रयोग में कुछ ध्यान देने योग्य बातें :
õ तुलसी कि प्रकृति गर्म हैं, शरीर से गर्मी निकालने
के लिये। तुलसी को दही या छाछ के साथ सेवन करने से, उष्ण गुण
हल्के हो जाते हैं।
õ तुलसी संध्या एवं रात्री में नहीं तोड़ें, ऐसा करने से शरीर में विकार उत्पन्न हो सकते हैं। क्योकि
अंधेरे में तुलसी से निकलने वाली विद्युत
तरंगे तीव्र हो जाती हैं।
õ तुलसी के साथ दूध, नमक, प्याज, लहसुन, मूली, मांसाहार, खट्टे पदार्थ सेवन करना हानिकारक होता हैं।
õ तुलसी के पत्ते दांतो से चबाकर ना खायें, अगर खायें हैं तो तुरंत
कुल्लाकर लें। कारण इसका अम्ल दांतों के एनेमल को खराब कर देता है।
õ चरक संहिता में बताया गया है कि तुलसी को
दूध के साथ कभी भी प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से कुष्ठ रोग होने की संभावना बनी रहती है।
õ कार्तिक मास में यदि तुलसी के पत्ते पान के साथ सेवन करने से
शारीरिक कष्ट हो सकता है।
õ तुलसी का अधिक मात्रा में सेवन करना
मस्तिष्क के लिए हानिकारक होता है।
तुलसी सेवन का सही तरीका-
[ तुलसी के प्रातः खाली पेट सेवन से अत्याधिक
लाभ प्राप्त होता है।
[ तुलसी के पत्तों को या किसी भी अंग को
सुखाना हो तो केवल छाया में सुखाएं। धुप में सुखाने से तुलसी के गुणों में कमी आती
हैं।
[ तुलसी के फायदे को देखते हुए एक साथ
अधिक मात्रा में सेवन करना हानिकारक होता हैं। तुलसी के पत्तों का चूर्ण 1 से 3 ग्राम, तुलसी के पत्तों का रस 5 से 10 मिलीलीटर , काढ़ा 20 से 50
मिलीलीटर और बीजों का चूर्ण 1 से 2 ग्राम तक प्रयोग किया जाता है।
तुलसी के सेवन से फायदे (HEALTH BENEFIT OF HOLY BASIL)-
तुलसी
एक ऐसा पौधा है जो औषधीय गुणों से भरपूर है इसलिए हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे
को पूज्य माना गया है. यहां तक कि हिन्दू धर्म के अनुसार घर के आंगन में तुलसी का
पौधा लगाना अनिवार्य माना गया है. भले ही आज अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में
तुलसी के गुणों को लेकर शोध किया जा रहा हो लेकिन हजारों साल पहले से ही तुलसी के कई
औषधीय फायदे बताए गए हैं तुलसी एक ऐसा
पौधा है जो कई तरह के अद्भुत औषधिय गुणों से भरपूर है। हिन्दू धर्म में तुलसी को
इसके निम्नलिखित औषधीय गुणों के कारण
पूज्य माना गया है-
õतुलसी
के पत्ते एंटीबॉयोटिक का काम करते हैं.
õप्रतिदिन
तुलसी के पत्तों को खाने अथवा चाय में मिलाकर पीने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता
मज़बूत होती है|
õतुलसी
के पत्तों को खाने से बीमारियाँ दूर होती है और शरीर भी संतुलित रहती है.
õहर
रोज सुबह तुलसी के पांच पत्ते खाने से व्यक्ति पूरे दिन तरोताज़ा महसूस करता है.
õबारिश
के मौसम में रोजाना तुलसी के पत्ते खाने से मौसमी बुखार व जुकाम जैसी समस्याएं दूर
रहती हैं.
õतुलसी
की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है. तुलसी के पत्ते
दांतों को भी स्वस्थ रखते हैं.
õचेहरे
पर चमक बनाए रखने के लिए लोग बाजार में आई तरह-तरह की क्रीम का प्रयोग करते हैं
लेकिन हर रोज तुलसी के पत्ते खाने से चेहरे की चमक हर दिन बढ़ती जाती है.
õतुलसी
की जड़ और पत्तों का काढ़ा बुखार नाशक होता है. तुलसी, अदरक और मुलैठी को
घोटकर शहद के साथ लेने से सर्दी व बुखार में आराम मिलता है.
õमासिक धर्म के दौरान कमर में दर्द हो
रहा हो तो एक चम्मच तुलसी का रस लें। इसके अलावा तुलसी के पत्ते चबाने से भी मासिक
धर्म नियमित रहता है।
õबारिश के मौसम में रोजाना तुलसी के
पांच पत्ते खाने से मौसमी बुखार व जुकाम जैसी समस्याएं दूर रहती है। तुलसी की कुछ
पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है। मुंह के छाले दूर होते हैं
व दांत भी स्वस्थ रहते हैं।
õसुबह पानी के साथ तुलसी की पत्तियां
निगलने सेकई प्रकार की बीमारियां व संक्रामक रोग नहीं होते हैं। दाद, खुजली और त्वचा की
अन्य समस्याओं में रोजाना तुलसी खाने व तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से
कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है।
õतुलसी की जड़ का काढ़ा ज्वर (बुखार)
नाशक होता है।तुलसी, अदरक और मुलैठी को घोटकर शहद के साथ लेने से सर्दी के बुखार में आराम होता
है।
õतुलसी की माला धारण करने वाले व्यक्ति
को टांसिल में लाभ होता।
õ स्त्री रोग- मासिक धर्म,
श्वेत प्रदर यदि मासिक धर्म ठीक से नहीं आता तो एक ग्लास पानी में तुलसी
बीज को उबाले, आधा रह जाए तो इस काढ़े को पी जाएं, मासिक धर्म खुलकर होगा।
õमासिक धर्म के दौरान यदि कमर में दर्द भी हो रहा हो तो एक चम्मच
तुलसी का रस सेवन करें।
õतुलसी का रस 10 ग्राम चावल के उबले पानी के साथ
सात दिन पीने से प्रदर रोग ठीक होगा। इस दौरान दूध भात ही सेवन करें।
õतुलसी के बीज पानी में रातभर भिगो दें। सुबह मसलकर छानकर मिश्री के
मिलाकर सेवन करें। प्रदर रोग ठीक होता हैं।
õतुलसी के रस में शहद मिलाकर नियमित कुछ दिनों तक सेवन करने से स्मरण
शक्ति बढ़ती हैं।
õतुलसी के पत्तों का दो तीन चम्मच रस प्रातःकाल खाली पेट सेवन करने
से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
õतुलसी कि पिसी पत्तियों में एक चम्मच
शहद मिलाकर नित्य एक बार सेवन कर ने से शरीर निरोगी रहता हैं, चहरे पर चमक आती हैं।पानी
में तुलसी के पत्ते डालकर भिगोकर रखने से एवं यह पानी का सेवन करने से यह टॉनिक का
काम करता हैं।
õतुलसी भोजन को शुद्ध करने वाला माना जाता
हैं, इसी कारण ग्रहण लगने के
पूर्व भोजन में डाला जाता हैं जिससे सूर्य या चंद्र कि विकृत किरणों का कुप्रभाव
भोजन पर न पडे।
õतुलसी के
पत्तो को मृत व्यक्ति के मुख में डाला जाता हैं, धार्मिक मत
के अनुसार उस व्यक्ति को मोक्ष कि प्राप्ति होती हैं।
õतुलसी रक्त
कि कमी के लिए रामबाण हैं। तुलसी के नियमित सेवन से हीमोग्लोबीन तेजी से बढ़ता हैं,
शारीर कि स्फूर्ति बनी रहती हैं।
õतुलसी के
सेवन से अस्थि भंग(टूटी हड्डियां) शीघ्रता से जुड़ जाती हैं।
õगृह निर्माण के समय नींव में घड़े में
हल्दी से रंगे कपड़े में तुलसी कि जड़ रखने से भवन पर बिजली गिरने का डर नहीं होता।
õतुलसी रक्त में कोलेस्ट्रॉल
की मात्रा नियंत्रित करने की क्षमता रखती है।
õशरीर के वजन को नियंत्रित रखने हेतु भी तुलसी अत्यंत गुणकारी है।
इसके नियमित सेवन से भारी व्यक्ति का वजन घटता है एवं पतले व्यक्ति का वजन बढ़ता
है यानी तुलसी शरीर का वजन आनुपातिक रूप से नियंत्रित करती है।
õतुलसी के रस की कुछ बूंदों में थोड़ा-सा नमक मिलाकर बेहोश व्यक्ति
की नाक में डालने से उसे शीघ्र होश आ जाता है।
õचाय बनाते समय तुलसी के कुछ पत्ते साथ में उबाल लिए जाएं तो सर्दी,
बुखार एवं मांसपेशियों के दर्द में राहत मिलती है।
õ10 ग्राम तुलसी के रस को 5 ग्राम शहद के साथ
सेवन करने से हिचकी एवं अस्थमा के रोगी को ठीक किया जा सकता है।
õतुलसी के काढ़े में थोड़ा-सा सेंधा नमक एवं पीसी सौंठ मिलाकर सेवन
करने से कब्ज दूर होती है।
õ दोपहर भोजन के पश्चात तुलसी
की पत्तियां चबाने से पाचन शक्ति मजबूत होती है।
õ10 ग्राम तुलसी के रस के साथ 5 ग्राम शहद एवं 5
ग्राम पिसी कालीमिर्च का सेवन करने से पाचन शक्ति की कमजोरी समाप्त
हो जाती है।
õदूषित पानी में तुलसी की कुछ ताजी पत्तियां डालने से पानी का
शुद्धिकरण किया जा सकता है।
õरोजाना सुबह पानी के साथ तुलसी की 5 पत्तियां
निगलने से कई प्रकार की संक्रामक बीमारियों एवं दिमाग की कमजोरी से बचा जा सकता
है। इससे स्मरण शक्ति को भी मजबूत किया जा सकता है।
õ4-5 भुने हुए लौंग के साथ तुलसी की पत्ती चूसने से सभी प्रकार की
खांसी से मुक्ति पाई जा सकती है।
õतुलसी के रस में खड़ी शक्कर मिलाकर पीने से सीने के दर्द एवं खांसी
से मुक्ति पाई जा सकती है।
õतुलसी के रस को शरीर के चर्मरोग प्रभावित अंगों पर मालिश करने से
दाग, एक्जिमा एवं अन्य चर्मरोगों से मुक्ति पाई जा सकती है।
õतुलसी की पत्तियों को नींबू के रस के साथ पीस कर पेस्ट बनाकर लगाने
से एक्जिमा एवं खुजली के रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है।
õतुलसी कि सेवा करने वाले व्यक्ति को कभी चर्म रोग
नहीं, चर्म रोग हैं तो उसमें
सुधार होता हैं।
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तुलसी के बारे मे यह मान्यता भी है कि साँप इस पौधे
के पास नहीं जाते. इन सभी गुणों के कारण ही हिंदू धर्म में इस पौधे को माता की
संज्ञा दी गई है.
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