Guduchi(GILOY) – Uses & Benefits of Guduchi, Tinospora Cordifolia(गिलोय / गुडुची : अमृत के गुणों से भरपूर एक औषधी )



      गिलोय / गुडुची :  अमृत  के गुणों से भरपूर एक औषधी                     
     Guduchi(Giloe) – Uses & Benefits of Guduchi, Tinospora Cordifolia


     परिचय(INTRODUCTION)-                                                                        

गिलोय एक बहुत ही उपयोगी आयुर्वेदिक औषधि है। गिलोय  की लताएं लगभग भारत में सभी जगह पायी जाती है। हमेशा हरी-भरी रहने वाली यह लता कई वर्षो तक फूलती और बढ़ती रहती है। इसके बेल वृक्षों की सहायता से बढ़ती रहती है। नीम के वृक्ष पर चढ़ी गिलोय को सबसे उत्तम माना जाता है। इसके वृक्ष की लताओं, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों पर भी फैल जाते हैं। गिलोय के पत्ते दिल के आकार के पान के पत्तों के समान  होते हैं। इसके पुष्प पीले रंग के होते हैं | 

इसके फल लाल रंग के होते हैं जो छोटे-छोटे गुच्छों में लगते हैं जो गर्मी के मौसम में आते हैं । इसका तना हमारे अंगूठे जितना मोटा होता है जो अपनी प्रारंभिक अवस्था में हरा होता है, पकने पर यह धूसर रंग का हो जाता है, यही तना औषधि के काम आता है। गिलोय के फल मटर के समान अण्डाकार, चिकने गुच्छों में लगते हैं जो पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं तथा इसके बीज मुडे़ हुए तिरछे दानों के समान सफेद और चिकने होते हैं।

     वैज्ञानिको के अनुसार :                                                                          

गिलोय की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर यह पता चला है कि इसमें गिलोइन नामक कड़वा ग्लूकोसाइड, वसा अल्कोहल ग्लिस्टेराल, बर्बेरिन एल्केलाइड, अनेक प्रकार की वसा अम्ल एवं उड़नशील तेल पाये जाते हैं। पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फास्फोरस और तने में स्टार्च भी मिलता है। 


कई प्रकार के परीक्षणों से ज्ञात हुआ की वायरस पर गिलोय का प्राणघातक असर होता है। इसमें सोडियम सेलिसिलेट होने के कारण से अधिक मात्रा में दर्द निवारक गुण पाये जाते हैं। यह क्षय रोग के जीवाणुओं की वृद्धि को रोकती है। यह इन्सुलिन की उत्पत्ति को बढ़ाकर ग्लूकोज का पाचन करना तथा रोग के संक्रमणों को रोकने का कार्य करती है।

     पुराणों के अनुसार -                                                                           


गिलोय को अमृता भी कहा जाता है, क्योंकि यह स्वयं भी कभी नहीं मरती है और उसे भी मरने से बचाती है, जो इसका प्रयोग करता है। कहा जाता है की देव दानवों के युद्ध में अमृत कलश की बूँदें जहाँ जहाँ पडी, वहां वहां गिलोय उग गई। यह सभी तरह के व्यक्ति बड़े आराम से ले सकते हैं। ये हर तरह के दोष और बीमारियों का नाश करती है।

     गिलोय के अन्य नाम –                                                                             


गिलोय का वैज्ञानिक नाम 'टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया' (Tinospora cordifolia) है। इसे अंग्रेज़ी में गुलंच कहते हैं। कन्नड़ में अमरदवल्ली, गुजराती में गालो, मराठी में गुलबेल, तेलुगू में गोधुची, तिप्प्तिगा, फारसी में गिलाई, तमिल में शिन्दिल्कोदी आदि नामों से जाना जाता है। इसे संस्कृत में गडूची और अम्रतवल्ली, अमृता,मराठी में गुडवेल, गुजराती में गिलो के नामो से जाने जाने वाली वर्षो तक जीवित रहने वाली यह बेल या लता अन्य वृक्षों के सहारे चढ़ती है।

     प्राप्ति स्थान -                                                                                          



यदि आपके घर के आस-पास नीम का पेड़ हो तो आप वहां गिलोय बो सकते हैं। जिस वृक्ष को यह अपना आधार बनती है, उसके गुण भी इसमें समाहित हो जाते हैं । इस दृष्टि से आयुर्वेद में वही गिलोय श्रेष्ठ मानी जाती है जिसकी बेल नीम पर चढी हुई हो। आप गिलोय को अपने घर के गमले में लगा कर रस्‍सी से उसकी लता को बांध सकते हैं। इसके बाद इसके रस का प्रयोग कर सकते हैं। गिलोय एक दवाई के रूप में जानी जाती है, जिसका रस पीने से शरीर के अनेको कष्‍ट और बीमारियां दूर हो जाती हैं। गिलोय हमारे यहां लगभग सभी जगह पायी जाती हैयह मैदानोंसड़कों के किनारेजंगलपार्कबाग-बगीचोंपेड़ों-झाड़ियों  और दीवारों पर लिपटी हुई दिख जाती है। इसकी बेल बड़ी तेजी से बढ़ती है। इसके पत्ते पान की तरह बड़े आकार के हरे रंग के होते हैं। गर्मी के मौसम में आने वाले इसके फूल छोटे गुच्छों में होते हैं और इसके फल मटर जैसे अण्डाकार, चिकने गुच्छों में लगते हैं जो बाद में पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं। गिलोय के बीज सफ़ेद रंग के होते हैं। जमीन या गमले में इसकी बेल का एक छोटा सा टुकड़ा लगाने पर भी यह उग जाती है और बड़ी तेज गति से स्वछन्द रूप से बढ़ती जाती है और जल्दी ही बहुत लम्बी हो जाती है।


     गिलोय के औषधीय गुण-                                                                


गिलोय शरीर के दोषों (कफ ,वात और पित्) को संतुलित करती है और शरीर का कायाकल्प करने की क्षमता रखती है। गिलोय का उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धातू विकार, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, चर्म रोग, झाइयां, झुर्रियां, कमजोरी, गले के संक्रमण, खाँसी, छींक, विषम ज्वर नाशक, टाइफायड, मलेरिया, डेंगू, पेट कृमि, पेट के रोग, सीने में जकड़न, जोडों में दर्द, रक्त विकार, निम्न रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य,(टीबी), लीवर, किडनी, मूत्र रोग, मधुमेह, रक्तशोधक, रोग पतिरोधक, गैस, बुढापा रोकने वाली, खांसी मिटाने वाली, भूख बढ़ाने वाली पाकृतिक औषधि के रूप में खूब प्रयोग होता है।

     आइये इसके कुछ औषधीय प्रयोगों को जानें :-                                      




Yसर्प विष में इसकी जड की  रस या क्वाथ को काटे हुए स्थान पर लगाया जाता है |

Yजौंडिस यानी पीलिया से पीड़ित रोगियों में गीली गुडूची के टुकडों की माला बनाकर गले में पहनाना कामला से पीड़ित रोगीयों  के लिए हितकारी माना गया है।

Yगिलोय स्वरस में मधु मिलाकर सेवन से बल बढता है।

Yगिलोय के  क्वाथ के  नियमित सेवन से गठिया में आराम मिलता है।

Yगिलोय चूर्ण को शुण्ठी  चूर्ण के साथ सममात्रा में लेने पर मंदाग्नि दूर होती है |

Yब्राह्मी के साथ  गुडूची का क्वाथ लेने से उन्माद  रोगियों में लाभ  देता  है |

Yगिलोय, अतीस, इन्द्र जौ, नागरमोथा, सौंठ  एवं चिरायता का क्वाथ बनाकर लेने से ज्वरातिसार मिटता है।

Yशतावरी  के साथ गुडूची का क्वाथ पिलाने से श्वेतप्रदर  में  लाभ मिलता है।

Yगिलोय, गोखरु, आंवला, मिश्री समान भाग मिलाकर 1 -1 चम्मच  2 बार दूध् के साथ सेवन करने से शरीर में बल की वृद्धि होती  है  एवं इसे    उत्तम बाजीकरण रसायन माना गया है |

Yगिलोय, ब्राह्मी, शंखपुष्पी चूर्ण को आंवले के मुरब्बे के साथ सेवन करने से रक्त चाप नियन्त्रित होता है।

 Yगिलोय, कालीमिर्च, वंशलोचन, इलायची आदि को बराबर मात्रा में लेकर मिला लें। इसमें से 1-1 चम्मच की मात्रा में 1 कप दूध के साथ कुछ हफ्तों तक रोजाना सेवन करने से क्षय रोग दूर हो जाता है।

     श्रध्येय आचार्य बालकृष्ण के मुख से गिलोय के बारे में अद्भुत जानकारी विस्तार  से जानने हेतु देखें यह वीडियो - 




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