Giloy benefits: its medicinal uses and how to use Of Giloy In Different Diseases(दर्जन भर बड़े रोगों की रामबाण दवा है गिलोय)
Giloy benefits: how to use Of Giloy In Different Diseases

गिलोय एक ऐसी लता है जो भारत में सवर्त्र पैदा होती है। नीम
के पेड़ पर चढ़ी गिलोय औषधि के रूप में प्राप्त करने में बेहद प्रभाव शाली है।
अमृत तुल्य उपयोगी होने के कारण इसे आयुर्वेद में अमृता नाम दिया गया है। ऊंगली
जैसी मोटी धूसर रंग की अत्यधिक पुरानी लता औषधि के रूप में प्रयोग होती है। गिलोय औषधीय गुणों से भरपूर है।
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जानकार लोग आज भी इस
औषधीय बेल का प्रयोग विभिन्न बीमारियों में करते हैं। अमृता के नाम से प्रचलित
गिलोय में ऐसे गुणकारी तत्व पाए जाते हैं जो व्यक्ति के शरीर में रोग प्रतिरोधक
क्षमता को मेंटेन रखता है। तो आइये विस्तार से जानते हैं गिलोय के औषधीय गुणों के बारे में -
गिलोय के औषधीय गुण -
औषधि की मात्रा- हरी ताजी गिलोय का रस 10 मिली. से 20 मिली तक। गिलोय का चूर्ण 4-6 ग्राम तक, गिलोय का सत्व 1/2 ग्राम से 3 ग्राम तक।
मलेरिया बुखार:
यह एक
प्रकार का बुखार है जो ठण्ड् या सर्दी (कॅंपकपी) लग कर आता है। मलेरिया रोगी का
रोजाना या एक दिन छोडकर तेज बुखार आता है। लेरिया का कारण है मलेरिया परजीवी
कीटाणु जो इतने छोटे होते है कि उन्हे सिर्फ माइकोस्कोकप ही देखा जा सकता है। ये
परजीवी मलेरिया से पीडित व्यहक्ति के खून मे पाये जाते है। मलेरिया मादा एनोलीज
जाति के मच्छ रों से मलेरिया का रोग फैलता है। मलेरिया के लक्षण अचानक सर्दी लगना
(कॅंपकॅंपी लगना ,अधिक से अधिक रजाई कम्बैल ओढना)।फिर
गर्मी लगकर तेज बुखार होना। पसीना आकर बुखार कम होना व कमजोर महसूस करना आदि हैं | अतः मलेरिया से पीड़ित व्यक्ति का गिलोय से उपचार करना चाहिए -
उपचार -
Y गिलोय 5 अंगुल लम्बा टुकड़ा
और 15 कालीमिर्च को मिलाकर कुटकर 250 मिलीलीटर
पानी में डालकर उबाल लें। जब यह 58 ग्राम बच जाए तो इसका
सेवन करें इससे मलेरिया बुखार की अवस्था में लाभ मिलेगा।
Y गिलोय (गुरूच) के काढ़े या रस में छोटी पीपल और शहद
मिलाकर 40 से 80 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करने से लाभ
मिलता है।
दमा (श्वास का रोग):
दमा एक ऐसी स्थिति है, जो फेफड़ों में मौजूद छोटे वायु
मार्ग यानी ब्रॉन्क्रियल्स को प्रभावित कर देती है। इसकी शुरुआत किसी भी उम्र में
हो सकती है, लेकिन ज्यादातर यह बचपन में ही शुरू हो जाता है।
हर 10 में से एक बच्चा और हर 20 में से
एक बालिग दमा से पीड़ित है। दमा कि समस्या में गिलोय का उपयोग किया जाता है -
उपचार -
Y गिलोय की जड़ की छाल को पीसकर मट्ठे के साथ लेने से
श्वास-रोग ठीक हो जाता है।
Y 6 ग्राम गिलोय का रस, 2 ग्राम इलायची और 1 ग्राम की मात्रा में वंशलोचन शहद
में मिलाकर खाने से क्षय और श्वास-रोग ठीक हो जाता है।
नेत्रविकार (आंखों की बीमारी):
यह नेत्र रोगों की
सर्वोत्तम औषधी है। इसके सेवन से नेत्रों से कम दिखना, आँखों के
आगे धुंधलापन होना,अँधेरा छा जाना,
सर में दर्द रहना, आँखों की कमजोरी एवं समस्त
आँखों के विकारो को दूर करता है। गिलोय के सेवन से नेत्र विकारों को दूर किया जा सकता है -
उपचार -
Y लगभग 11 ग्राम गिलोय के
रस में 1-1 ग्राम शहद और सेंधानमक मिलाकर, इसे खूब अच्छी तरह से गर्म करें और फिर इसे ठण्डा करके आंखो में लगाने से
आंखों के कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं।
Y गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसे
पीपल के चूर्ण और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती
है तथा और भी आंखों से सम्बंधित कई प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।
Y गिलोय के रस का 10 मिली लीटर शहद या मिश्री के साथ सेवन कराएं नेत्रदोष
में तुरंत लाभ होगा।
संधिवात में /गठिया/संधि शोथ में -
संधि शोथ यानि
"जोड़ों में दर्द" के रोगी के एक या कई जोड़ों में दर्द, अकड़न या सूजन आ जाती है। इस रोग में जोड़ों में गांठें बन जाती हैं और
शूल चुभने जैसी पीड़ा होती है, इसलिए इस रोग को गठिया भी कहते हैं। संधिशोथ में रोगी को आक्रांत संधि में असह्य पीड़ा होती है, नाड़ी की
गति तीव्र हो जाती है, ज्वर होता है, वेगानुसार
संधिशूल में भी परिवर्तन होता रहता है। इसकी उग्रावस्था में रोगी एक ही आसन पर
स्थित रहता है, स्थानपरिवर्तन तथा आक्रांत भाग को छूने में भी
बहुत कष्ट का अनुभव होता है। गिलोय के उपयोग से गठिया के दर्द में आराम पहुँचाया जा सकता है -
उपचार -
Y गिलोय और
सोंठ को एक ही मात्रा में लेकर उसका काढ़ा बनाकर पीने से पुराने से पुराना गठिया
रोग में फायदा मिलता है।
Y गिलोय, हरड़ की छाल, भिलावां, देवदारू,
सोंठ और साठी की जड़ इन सब को 10-10 ग्राम की
मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें तथा छोटी बोतल में भर लें। इसका आधा चम्मच
चूर्ण आधा कप पानी में पकाकर ठण्डा होने पर पी जायें। इससे रोगी के घुटनों का दर्द
ठीक हो जाता है।
Y घुटने के
दर्द दूर करने के गिलोय का रस तथा त्रिफुला का रस आधा कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम
भोजन के बाद पीने से लाभ मिलता है।
Y गिलोय का काढ़ा बनाकर
उसमें 5 मिली अरंडी का तेल मिलाकर सेवन करें। जटिल से जटिल संधिवात तक दूर हो जाता है ।
Y गिलोय के 2-4 ग्राम का चूर्ण,
दूध के साथ दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से गठिया रोग ठीक हो जाता है।
विभिन्न ज्वरों में कारगर औषधी गिलोए-
जब शरीर का ताप सामान्य से अधिक हो जाये तो उस दशा को ज्वर या बुख़ार (फीवर) कहते है। यह रोग नहीं बल्कि एक लक्षण (सिम्टम्) है जो बताता है कि शरीर का ताप नियंत्रित करने वाली प्रणाली ने शरीर का वांछित ताप (सेट-प्वाइंट) १-२ डिग्री सल्सियस बढा दिया है। मनुष्य के शरीर का सामान्य तापमान ३७° सेल्सियस या ९८.६° फैरेनहाइट होता है। जब शरीर का तापमान इस सामान्य स्तर से ऊपर हो जाता है तो यह स्थिति ज्वर या बुखार कहलाती है। ज्वर कोई रोग नहीं है। यह केवल रोग का एक लक्षण है। किसी भी प्रकार के संक्रमण की यह शरीर द्वारा दी गई प्रतिक्रिया है। बढ़ता हुआ ज्वर रोग की गंभीरता के स्तर की ओर संकेत करता है। गिलोय के सेवन से विभिन्न ज्वरों को ठीक किया जा सकता है -
उपचार -
1. गिलोय के साथ धनिया, नीम की छाल का आंतरिक भाग मिला कर काढ़ा बना लें। दिन में काढ़े की 2 बार सेवन करने से बुखार उतर जाएगा। बुखार को ठीक करने का इसमें अद्भुत गुण है। यह मलेरिया पर अधिक प्रभावी नहीं है लेकिन शरीर की समस्त मेटाबोलिक क्रियाओं को व्यवस्थित करने के साथ सिनकोना चूर्ण या कुनाईनं (कोई भी एंटी मलेरियल) औषधि के साथ देने पर उसके घातक प्रभावों को रोक कर शीघ्र लाभ देती हे।
2. गिलोय 6 ग्राम, धनिया 6 ग्राम, नीम की छाल 6 ग्राम, पद्याख 6 ग्राम और लाल चंदन 6 ग्राम इन सब को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस बने हुए काढ़े को सुबह और शाम पीते रहने से हर प्रकार का बुखार ठीक हो जाता है।
3. गिलोय, पीपरामूल (पीपल की जड़), नीम की छाल, सफेद चंदन, पीपल, बड़ी हरड़, लौंग, सौंफ, कुटकी और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से 3 से 6 ग्राम की मात्रा में व्यस्क रोगी को तथा छोटे बालकों को 1 से 2 ग्राम की मात्रा पानी के साथ सेवन कराएं इससे लाभ मिलता है।
4. गिलोय के रस में शहद मिलाकर चाटने से पुराना बुखार ठीक हो जाता है।
5. गिलोय के ताजे रस में शहद या मिश्री मिलाकर दिन में 3 बार देने से काले ज्वर में लाभ होता है।
6. गिलोय, लाल चंदन, मुलहठी, रास्ना, लघु पंचमूल, कुंभेर के फल, खिरेंटी और कटाई आदि को मिलाकर पीसकर उबालकर काढ़ा बना लें। जब मसूरिका के दाने पकने या भरने लगे उस समय में इसे पीने से लाभ मिलता है।
7. 5 ग्राम गिलोय का रस को थोड़े से शहद के साथ मिलाकर चाटने से आन्त्रिक बुखार ठीक हो जाता है। गिलोय का काढ़ा भी शहद के साथ मिलाकर पीना लाभकारी है।
वात-ज्वर-
जब किसी व्यक्ति को वात ज्वर हो जाता है तो इस अवस्था
में उसका बुखार 104
डिग्री सेल्सियस से 105 डिग्री सेल्सियस तक हो
जाता है और कभी-कभी तो बुखार इससे भी तेज हो जाता है। इस रोग से पीड़ित रोगी के
शरीर के सभी भागों तथा जोड़ों में सूजन और दर्द होने लगता
है। कभी-कभी इस रोग के कारण जोड़ों पर बारी-बारी से सूजन तथा दर्द होता है। इस रोग
के कारण रोगी व्यक्ति को अपने शरीर के अंगों को हिलाने-डुलाने में परेशानी होने
लगती है और दर्द में तेजी आ जाती है तथा रोगी को कब्ज की समस्या भी होने लगती है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति को सिर में
दर्द, पेशाब लाल रंग का होना, सांस
की चाल में तेजी आना, अधिक प्यास लगना आदि समस्याएं हो
जाती हैं। रोगी व्यक्ति को रात के समय में रोग में और तेजी आ जाती है जिसके कारण
उसे बहुत अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। गिलोय के सेवन से वात ज्वर को कम किया जा सकता है -
उपचार -
Yगिलोय, नीम की छाल, कुटकी, नागरमोथा,
इन्द्रायन, सोंठ, पटोल
(परवल) के पत्तें और चंदन को 5- 5 ग्राम की मात्रा में लेकर
चूर्ण बना लें। इसमें से 1 चम्मच चूर्ण का काढ़ा बनाकर पीने
से वात-पित्त का बुखार में लाभ मिलता है।
Yवात के बुखार होने के 7 वें दिन की अवस्था में गिलोय, पीपरामूल, सोंठ और इन्द्रजौ को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है।
Yगम्भारी, बिल्व, अरणी, श्योनाक
(सोनापाठा), तथा पाढ़ल इनके जड़ की छाल तथा गिलोय, आंवला, धनियां ये सभी बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा
बना लें। इसमें से 20-30 ग्राम काढ़े को दिन में 2 बार सेवन करने से वातज्वर ठीक हो जाता है
Yदाख, गिलोय,
कुंभेर, त्रायमाण और अनन्तमूल को बराबर मात्रा
में लेकर काढ़ा लें फिर इस काढ़े में थोड़ा- सा गुड़ मिलाकर पीने से वात और कफ के
बुखार नष्ट हो जाते हैं।
Yगिलोय, सोंठ, कटेरी, पोहकरमूल और
चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर 1 दिन में सुबह
और शाम सेवन करने से वात का ज्वर ठीक हो जाता है।
Yगिलोय, कटेरी, सोंठ और एरण्ड की जड़ को 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात के ज्वर (बुखार) में लाभ
पहुंचाता है। यह काढ़ा उस ज्वर की अवस्था में भी लाभकारी है जिसमें कफ और वायु की
अधिकता होती है।
जीर्ण ज्वर-
जब रोगी को 21 दिन तक बुखार बना रहे उतरे नहीं तो उसे जीर्ण बुखार कहते हैं। यह बुखार
कभी धीमा और कभी तेज हो जाता है। भूख न लगे, क्षीणता या कमजोरी
बढ़ जाये तो वह आदमी जीर्ण बुखार से पीड़ित हो जाता है | गिलोय के उपचार से जीर्ण ज्वर के रोगी को लाभ पहुंचा सकते हैं -
उपचार -
Y20 मिलीलीटर गिलोय के रस में 1 ग्राम पिप्पली तथा 1 चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन
करने से जीर्णज्वर, कफ आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
Yगिलोय के रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकर लेने
से जीर्ण-ज्वर तथा खांसी ठीक हो जाती है। गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और
शाम सेवन करें इससे जीर्ण-ज्वर ठीक होता है।
Yगिलोय, छोटी पीपल, सोंठ, नागरमोथा तथा
चिरायता इन सबा को पीसकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से अजीर्णजनित बुखार कम
होता है।
क्षय (टी.बी.):
तपेदिक, क्षयरोग, एमटीबी या टीबी एक आम और कई मामलों में घातक संक्रामक बीमारी है जो
माइक्रोबैक्टीरिया, आमतौर परमाइकोबैक्टीरियम तपेदिक के विभिन्न प्रकारों की वजह से होती है। क्षय
रोग आम तौर पर फेफड़ों पर हमला करता है,
लेकिन यह शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। सक्रिय टीबी संक्रमण के आदर्श लक्षण खून-वाली थूक के साथ पुरानी
खांसी, बुखार, रात को पसीना आना और वजन घटना हैं । गिलोय के उपचार से इसके खतरे से बचा जा सकता है -
उपचार -
Y गिलोय, कालीमिर्च, वंशलोचन, इलायची
आदि को बराबर मात्रा में लेकर मिला लें। इसमें से 1-1 चम्मच
की मात्रा में 1 कप दूध के साथ कुछ हफ्तों तक रोजाना सेवन
करने से क्षय रोग दूर हो जाता है।
Y गिलोय, दशमूल, असगंध, सतावर, बलामूल, अड़ूसा, पोहकरमूल तथा
अतीस को बराबर की मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इसमें से 50-60 ग्राम की मात्रा को सुबह-शाम सेवन करने से टी.बी का रोग ठीक हो जाता है।
इसके सेवन करने के साथ ही रोगी को केवल दूध अथवा मांस का रस ही सेवन करना चाहिए और
कुछ भी नहीं।
Y कालीमिर्च, गिलोय का बारीक चूर्ण, छोटी इलायची के दाने, असली वंशलोचन और भिलावा समान भाग कूट-पीसकर कपड़े से छान लें। इसमें से 130
मिलीग्राम की मात्रा मक्खन या मलाई में मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से टी.बी. रोग ठीक हो जाता है।
कैंसर की बीमारी में-
कैंसर बहुत पीड़ादायक होता
है । ख़ून और कुछ एक अंगों के कैंसर के अलावा सभी तरह के कैंसर दूसरे अंगों में
फैलते हैं। कैंसर एक जगह से शुरू
होता है और फिर दूर दूर तक पहुँच जाता है। यह लिवर, फेफड़ों और अन्य अंगों तक खून और
लसिका के माध्यम से पहुँच जाता है। कुछ अंगों से यह ज़्यादा आसानी से दूसरे अंगों
तक पहुँचता है और कुछ से कम आसानी से। भारत में कैंसर के मामलों में से आधे से
ज़्यादा मुँह, गले, गर्भाशय ग्रीवा के
होते हैं। गर्भाशय ग्रीवा और गर्भाशय के कैंसर महिलाओं को होने वाले कैंसर में से
सबसे आम है। गिलोय के उपचार से कैंसर के खतरे से बचा जा सकता है -
उपचार -
Y कैंसर की बीमारी में गिलोय की 6 से 8 इंच की डंडी लें इसमें wheat grass/गेंहूं के जवारे का
जूस और 5-7 पत्ते तुलसी के और 4-5 पत्ते
नीम के डालकर सबको कूटकर काढ़ा बना लें। इसके निरंतर प्रयोग से कैंसर जेसी बड़ी
बीमारी में भी आराम मिलता है |
Y रक्त कैंसर से पीड़ित
रोगी को गिलोय के रस में जवाखार मिलाकर सेवन कराने से उसका रक्तकैंसर ठीक हो जाता
है।
Y गिलोय
लगभग 2 फुट लम्बी तथा एक अंगुली जितनी मोटी, 10 ग्राम गेहूं
की हरी पत्तियां लेकर थोड़ा सा पानी मिलाकर पीस लें फिर इसे कपड़े में रखकर निचोड़कर
रस निकला लें। इस रस की एक कप की मात्रा खाली पेट सेवन करें रक्त कैंसर से
पीड़ित रोगी को इससे लाभ मिलेगा।
एनीमिया में -
एनीमिया एक सामान्य और पूरी तरह ठीक होने वाली
स्वास्थ्य समस्या है, लेकिन अगर समय रहते इसका उपचार न किया जाए तो यह घातक जटिलताएं
भी पैदा कर सकता है। जब लाल रक्त कणिकाओं की संख्या कम हो जाती है, तब पूरे शरीर को अधिक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए हृदय को ज्यादा
रक्त पंप करना पड़ता है। अगर हृदय इतनी मेहनत करेगा तो उसकी धड़कन बढ़ जाएगी और
इससे एक गंभीर अवस्था लेफ्ट वेंट्रीक्युलर हाइपरट्रॉफी (एलवीएच) हो जाएगी, जिसमें हृदय की मांसपेशियों का आकार बढ़ जाता है। इससे हार्ट
फेल होने या लाल रक्त कणिकाओं के जल्दी नष्ट होने का खतरा बढ़ जाता है। गिलोय के उपचार से इसके खतरे से बचा जा सकता है -
उपचार -
Y इसकी डंडी का सेवन खाली पेट करने से aplastic
anaemia भी ठीक होता है। इसमें इसकी
डंडी का ही प्रयोग करते हैं पत्तों का नहीं, उसका लिसलिसा पदार्थ ही दवाई होता है।
Y डंडी को आप ऐसे भी चूस सकते है |चाहे तो डंडी कूटकर, उसमें पानी मिलाकर छान लें, और उसका सेवन करें |आप
किसी भी तरह गिलोय का सेवन करें आपको हर प्रकार से गिलोय लाभ पहुंचाएगी।
Y 360 मिलीलीटर गिलोय के रस में घी मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से शरीर
में खून की वृद्धि होती है।
Y गिलोय
(गुर्च) 24 से 36 मिलीग्राम सुबह-शाम शहद एवं गुड़ के साथ सेवन
करने से शरीर में खून की कमी दूर हो जाती है।
पेट की बीमारियों में –
पेट में दर्द, कब्ज,
गैस और एसिडिटी कॉमन समस्याएं हैं। इन
समस्याओं का मुख्य कारण खाना ठीक से न पचना है। पेट
अनेक रोगों की जड़ है। पेट खराब हो तो शरीर बीमारियों का घर बन जाता है। इसीलिए इन
समस्याओं से बचने के लिए कब्ज को दूर करना जरूरी होता है। यदि आप भी इन समस्याओं
से परेशान हैं, तो हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे नुस्खे
जो कब्ज और पेट की अन्य परेशानियों को दूर कर देते हैं।
उपचार -
Y गिलोय का रास 7 मिलीलीटर से लेकर 10
मिलीलीटर की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से
पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
Y 20 ग्राम पुनर्नवा, कटुकी, गिलोय,
नीम की छाल, पटोलपत्र, सोंठ,
दारुहल्दी, हरड़ आदि को 320 मिलीलीटर पानी में मिलाकर इसे उबाले जब यह 80 ग्राम
बच जाए तो इस काढ़े को 20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पीने
से पेचिश ठीक हो जाती है।
Y 1 लीटर गिलोय रस का, तना 250 ग्राम
इसके चूर्ण को 4 लीटर दूध और 1 किलोग्राम
भैंस के घी में मिलाकर इसे हल्की आग पर पकाएं जब यह 1 किलोग्राम
के बराबर बच जाए तब इसे छान लें। इसमें से 10 ग्राम की
मात्रा को 4 गुने गाय के दूध में मिलाकर सुबह-शाम पीने से
पेचिश रोग ठीक हो जाता है तथा इससे पीलिया एवं हलीमक रोग ठीक हो सकता है।
Y 18 ग्राम ताजी गिलोय,
2 ग्राम अजमोद और छोटी पीपल, 2 नीम की सींकों
को पीसकर 250 मिलीलीटर पानी के साथ मिट्टी के बर्तन में
फूलने के लिए रात के समय रख दें तथा सुबह उसे छानकर रोगी को रोजाना 15 से 30 दिन तक पिलाने से पेट के सभी रोगों में आराम
मिलता है।
Y गिलोय के
रस का सेवन करने से ऐसीडिटी से उत्पन्न अनेक रोग जैसे- पेचिश, पीलिया, मूत्रविकारों (पेशाब से सम्बंधित रोग) तथा
नेत्र विकारों (आंखों के रोग) से छुटकारा मिल जाता है।
Y गिलोय के
रस में कुष्माण्ड का रस और मिश्री मिलाकर पीने से अम्लपित्त की विकृति नष्ट हो
जाती है।
गिलोय का
चूर्ण 2 चम्मच की मात्रा गुड़ के साथ सेवन करें इससे कब्ज की शिकायत दूर हो जाती
है।
Y अती, सोंठ, मोथा और गिलोय को
बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को 20-30 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पीने से मन्दाग्नि (भूख का कम लगना),
लगातार कब्ज की समस्या रहना तथा दस्त के साथ आंव आना आदि प्रकार के
कष्ट दूर हो जाते हैं।
Y गिलोय, नीम के पत्ते और कड़वे परवल के पत्तों को पीसकर शहद के साथ पीने से
अम्लपित्त समाप्त हो जाती है।
पित्त विकार में-
पित्त की वृद्धि से कब्ज-, सिर दर्द, भूख
न लगना, सुस्ती आदि के लक्षण होते हैं। इससे शरीर के अन्दर
और बाहर दोनों जगह जलन होती है। खून की गर्मी या पित्त के ज्यादा होने से कभी-कभी
त्वचा पर लाल-लाल चकत्ते या ददोड़े से निकल आते है जिनमें खुजल होती है। इसे पित्ती
उछलना कहते है। यह शीतपित्त, जुड़
पित्ती या छपाकी आदि नामों से जानी जाती है।
उपचार -
Y 10-10 ग्राम मुलेठी,
गिलोय, और मुनक्का को लेकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। इस काढ़े को 1 कप
रोजाना 2-3 बार पीने से रक्तपित के रोग में लाभ मिलता है।
Y 10 से 20 ग्राम
गिलोय के रस में बावची को पीसकर लेप बना लें। इस लेप को खूनी पित्त के दानों पर
लगाने तथा मालिश करने से शीतपित्त का रोग ठीक हो जाता है।
Y गिलोय के शर्बत में चीनी डालकर पीने
से पित्त बुखार ठीक हो जाता है।
Y गिलोय का रस 7 से 10 मिलीलीटर रोज 3 बार शहद में मिलाकर खायें इससे लाभ
मिलेगा।
Y गिलोय का
मिश्रण 100 ग्राम और अनन्तमूल का चूर्ण 100 ग्राम दोनों को 1
लीटर खोलते पानी में मिलाकर बंद बर्तन में 2 घंटे
के लिए रख दें। बाद में इसे मसलकर छान लें। इसमें से 50 ग्राम
से 100 ग्राम की मात्रा सुबह-शाम के समय में रोगी को पिलाने
से शीतपित्त ठीक हो जाता है।
Y गिलोय, हल्दी, नीम की अन्तरछाल और यवासा का काढ़ा बनाकर पीने
से शीत पित्त की विकृति खत्म होती है।
पीलिया में-
मौसम बदलने के साथ ही
पीलिया (जॉन्डिस) का प्रकोप बढ़ रहा है। पीलिया का आयुर्वेद में अचूक इलाज है।
आयुर्वेद चिकित्सकों के अनुसार गिलोय अथवा काली मिर्च अथवा
त्रिफला का 5 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर प्रतिदिन सुबह और शाम चाटने से
पीलिया रोग ठीक हो जाता है।। गिलोए पीलिया की अचूक दवा है और इसका सेवन किसी
भी रूप में किया जाए स्वास्थ्य के लिए लाभदायक ही होता है।
उपचार -
Y गिलोय
अथवा काली मिर्च अथवा त्रिफला का 5 ग्राम चूर्ण शहद
में मिलाकर प्रतिदिन सुबह और शाम चाटने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
Y गिलोय का 5 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
Y गिलोय की
लता गले में लपेटने से कामला रोग या पीलिया में लाभ होता है।
Y गिलोय का
रस 1 चम्मच की मात्रा में दिन में सुबह और शाम सेवन करें।
Y गिलोय, अडूसा, नीम की छाल, त्रिफला,
चिरायता, कुटकी इन सबको बराबर की मात्रा में
लेकर कुट ले फिर एक कप पानी में पकाकर काढ़ा बनाएं इसके बाद इसे छानकर इसमें
थोड़ा-सा शहद लें फिर इसे पी जाएं। 20 दिन तक इसका सेवन करें
इससे पीलिया रोग ठीक हो जाएगा।
Y 20-30 ग्राम अमृता काढ़े में 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3-4
पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
Y गिलोय के 10-20 पत्तों को पीसकर एक गिलास छाछ (मट्ठा) में मिलाकर सुबह के समय पीने से
पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
शरीर में जलन-
वातावरण में उष्णता बढ़ने से शरीर में अनेक प्रकार के रोग
निर्माण होते हैं। जैसे- आँखों में जलन होना, हाथ-पैर के
तलुओं में जलन होना, पेशाब में जलन होकर पेशाब लाल रंग की
होती है। अधिक प्यास लगना, वमन (उल्टी) होना, बार-बार शौच होना, लू लगने की तकलीफ होना। इन सभी
तकलीफों को दूर करने में गिलोय अत्यंत सहायक सिद्ध होता है|
उपचार -
Y गिलोय का चूर्ण, अरंडी का बीज पीस
कर दही के साथ मिलाकर तलवों में लगाने से जलन एकदम मिट जाएगी।
Y शरीर की
जलन या हाथ पैरों की जलन में 7 से 10 मिलीलीटर
गिलोय के रस को गुग्गुल या कड़वी नीम या हरिद्र, खादिर एवं
आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। प्रतिदिन 2 से 3 बार इस काढ़े का सेवन करने से शरीर में होने वाली जलन दूर हो जाती है।
Y गिलोय और
पित्तपापड़े के रस को पीने से हर तरह की जलन शांत हो जाती है।
मधुमेह:
मधुमेह या चीनी की बीमारी एक खतरनाक रोग है। यह
बीमारी में हमारे शरीर में अग्नाशय द्वारा इंसुलिन का स्त्राव कम हो जाने के कारण
होती है। रक्त ग्लूकोज स्तर बढ़ जाता है, साथ ही इन मरीजों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा के अवयव
भी असामान्य हो जाते हैं। धमनियों में बदलाव होते हैं। इन मरीजों में आँखों,
गुर्दों, स्नायु, मस्तिष्क,हृदय के क्षतिग्रस्त होने से इनके गंभीर, जटिल,
घातक रोग का खतरा बढ़ जाता है।
उपचार -
Y 40 ग्राम हरी गिलोय का रस, 6 ग्राम पाषाण भेद, और 6 ग्राम शहद को मिलाकर 1 महीने
तक पीने से मधुमेह रोग ठीक हो जाता है।
Y 20-50 मिलीलीटर गिलोय का रस सुबह-शाम बराबर मात्रा में पानी के साथ मधुमेह रोगी
को सेवन करायें या रोग को जब-जब प्यास लगे तो इसका सेवन कराएं इससे लाभ मिलेगा।
Y 15 ग्राम गिलोय का बारीक चूर्ण और 5 ग्राम घी को मिलाकर
दिन में 3 बार रोगी को सेवन कराऐं इससे मधुमेह (शूगर) रोग
दूर हो जाता है।
लिवर/यकृत/जिगर का रोग:
यकृत
शरीर के अत्यंत महत्वपूर्ण अंगों में से है। यकृत की कोशिकाएँ आकार में
सूक्ष्मदर्शी से ही देखी जा सकने योग्य हैं,
परंतु ये बहुत कार्य करती हैं। एक कोशिका इतना कार्य करती हैं कि
इसकी तुलना एक कारखाने से (क्योंकि यह अनेक रासायनिक यौगिक बनाती है), एक गोदाम से (ग्लाइकोजन, लोहा और बिटैमिन को संचित
रखने के कारण), अपशिष्ट निपटान संयंत्र से (पिपततवर्णक,
यूरिया और विविध विषहरण उत्पादों को उत्सर्जित करने के कारण) और
शक्ति संयंत्र से (क्योंकि इसके अपचय से पर्याप्त ऊष्मा उत्पन्न होती है) की जा
सकती है। यकृत से सम्बंधित सभी विकारों को हम गिलोय का उपयोग करके दूर कर सकते हैं -
उपचार -
गिलोय, अतीस, नागरमोथा, छोटी पीपल, सोंठ, चिरायता,
कालमेघ, यवाक्षार, हराकसीस
शुद्ध और चम्पा की छाल बराबर मात्रा में लेकर इसे कूटकर बरीक पीस लें और कपड़े से
छानकर इसका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 3-6 ग्राम की मात्रा
में लेने से जिगर से सम्बंधित अनेक रोग जैसे- प्लीहा, पीलिया
रोग, अग्निमान्द्य (अपच), भूख का न
लगना, पुराना बुखार, और पानी के
परिवर्तन के कारण से होने वाले रोग ठीक हो जाते हैं।
दिल की
बीमारी में –
भारत में पुरुषों की अपेक्षा
महिलाओं के लिए हार्ट अटैक ज्यादा खतरनाक होता है और इसीलिए महिलाओं की मौत का
मुख्य कारण हृदय रोग है। वहीं यह भी देखने में आया है कि महिलाएं किसी भी बीमारी
को अनदेखा कर देती हैं। आमतौर पर महिलाओं में हार्ट अटैक के लक्षण गर्दन या कंधे
में दर्द, पाचन क्रिया ठीक न होना, श्वास चढऩा तथा उलटी आने
को मन करना जैसे होने के कारण वे इसे कोई छोटी-मोटी बीमारी समझ लेती हैं जोकि काफी
खतरनाक साबित होती है। गिलोय उच्च कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए, शर्करा का स्तर बनाए रखने में मदद करता है। यह
शरीर को दिल से संबंधित बीमारियों से बचाए रखता है।
उपचार -
गिलोय और काली मिर्च का चूर्ण सम
मात्रा में मिलाकर गुनगुने पानी से सेवन करने से
हृदयशूल में लाभ मिलता है। गिलोय के रस का सेवन करने से दिल की कमजोरी दूर होती है और दिल के रोग ठीक होते हैं।
मोटापे
में-
मोटापे से कई बीमारियां जन्म लेती हैं जैसे हार्ट
अटैक, हाई ब्लड प्रेशर। स्त्री हो या पुरुष,
उनका वजन उनकी लंबाई के हिसाब से होना चाहिए जैसे 5 फिट लंबाई हो तो वजन 60 किलोग्राम कुछ कम या ज्यादा
हो तो एडजस्ट किया जा सकता है। मोटापे का मतलब है हमारी ऊंचाई के अनुपात में
अत्यधिक वजन होना। मोटापे की समस्या होने पर व्यक्ति का पूरा शरीर थुलथुला हो जाता
है और मांसपेशियां भी ढीली हो जाती है। अतः मोटापे को कम करने के लिए गिलोए का सेवन करना चाहिए -
उपचार -
Y गिलोय और
त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से मोटापा कम होता है
Y गिलोय में
हरड़, बहेड़ा, और आंवला मिला कर काढ़ा बनाइये और
इसमें शिलाजीत मिलाकर और पकाइए इस का नियमित सेवन से मोटापा रुक जाता है।
Y नागरमोथा, हरड और गिलोय को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। इसमें से 1-1
चम्मच चूर्ण शहद के साथ दिन में 3 बार लेने से
मोटापे के रोग में लाभ मिलता है।
Y हरड़, बहेड़ा, गिलोय और आंवले के काढ़े में शुद्ध शिलाजीत
पकाकर खाने से मोटापा वृद्धि रुक जाती है।
Y 3 ग्राम गिलोय और 3 ग्राम त्रिफला चूर्ण को सुबह और
शाम शहद के साथ चाटने से मोटापा कम होता जाता है।
वमन या उल्टी :
आमाषय की मांसपेशी के आक्षेपिक संकुचन से भोजन पदार्थ
और तरल पदार्थ का वेग से मुख मार्ग से निकलना वमन कहलाता है। उल्टी होने के कई कारण हो सकते हैं। जरूरत से ज्यादा खाना ,अधिक मात्रा में शराब पीना,गर्भावस्था,और पे्ट की गडबडी,माईग्रेन(आधाशीशी ) इस रोग के
मुख्य कारण हैं। गर्मी के मौसम में भोजन विषाक्तता(फ़ूड पाइजिनिंग) और ज्यादा
गर्मी से वमन होने लगती है। तेज शिरोवेदना से भी उल्टी होने की स्थिति बन जाती है।
पेट में कीडे होने और खांसी की वजह से भी उल्टी होती है।वमन मैं गिलोए अत्यंत लाभदायक होता है -
उपचार -
Y गिलोय का
रस और मिश्री को मिलाकर 2-2 चम्मच रोजाना 3 बार पीने से वमन (उल्टी) आना बंद हो जाती है।
Y धूप में
घूमने फिरने से या गर्मी के कारण से उल्टी आ रही हो तो 10-15 मिलीलीटर गिलोय के रस में 4-6 ग्राम मिश्री मिलाकर
सुबह-शाम पीने से उल्टी होना रूक जाती है।
Y गिलोय के 125 से 250 मिलीलीटर रस में 15 से 30
ग्राम तक शहद मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने
से वमन (साधारण उल्टी) भी बंद हो जाती है।
Y गिलोय का
काढ़ा बनाकर ठण्डा करके पीने से उल्टी होना बंद हो जाती है।
बवासीर और भगन्दर में-
बवासीर या पाइल्स एक ख़तरनाक
बीमारी है। बवासीर 2 प्रकार की होती है। आम भाषा में इसको
ख़ूँनी और बादी बवासीर के नाम से जाना जाता है। कही पर इसे महेशी के नाम से जाना
जाता है।
1- खूनी बवासीर :- खूनी
बवासीर में किसी प्रकार की तकलीफ नही होती है केवल खून आता है। पुराना होने पर
बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर
भी अन्दर नही जाता है।
2-बादी बवासीर :- बादी
बवासीर रहने पर पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। बवासीर
बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग़जी में फिस्टुला कहते हें।
फिस्टुला प्रकार का होता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज
होने पर यह केंसर का रूप ले लेता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा
साबित होता है।
अतः गिलोए का उपयोग बबासीर जैसी बीमारी में भी किया जाता है -
उपचार -
Y मट्ठे के
साथ गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण सुबह शाम लेने से बवासीर में लाभ होता है।
Y छाछ के
साथ गिलोय का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में सुबह और
शाम लेने से बवासीर में लाभ मिलता है।
Y 20 ग्राम हरड़, गिलोय, धनिया को
लेकर मिला लें तथा इसे 5 किलोग्राम पानी में पकाएं जब इसका
चौथाई भाग बाकी रह तब इसमें गुड़ डालकर मिला दें और फिर इसे सुबह-शाम सेवन करें
इससे सभी प्रकार की बवासीर ठीक हो जाती है।
Y गिलोय, सोंठ, पुनर्ववा, बरगद के पत्ते
तथा पानी के भीतर की ईट- इन सब को बराबर मात्रा में लें, और
पीसकर भगन्दर पर लेप करने से यदि भगन्दर की फुंसी पकी न हो तो वे फुंसी बैठ जाती
है।
Y गिलोय, सांठी की जड़, सोंठ, मुलहठी तथा
बेरी के कोमल पत्ते इनको महीन पीसकर इसे हल्का गर्म करके भगन्दर पर लेप करें इससे
लाभ मिलेगा।
पुरुष
सम्बन्धी रोगों में -
उपचार -
A- प्रमेह (वीर्य विकार):
Y गिलोय का
रस, हल्दी का चूर्ण और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर इसमें से 1-1 चम्मच दिन में 3 बार रोजाना 10-15 दिनों तक सेवन करने से प्रमेह के रोग में लाभ मिलता है।
Y गिलोय खस, आंवला, हरड़, पठानी लोध्र अंजन,
लाल चंदन, नागरमोथा, पलवल
की पत्ती, नीम की छाल, पद्यकाष्ठ इन
सभी पदार्थों को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर छान लें और किसी बर्तन में रख लें।
इस चूर्ण में से 10 ग्राम की मात्रा को शहद के साथ दिन में 3
बार लेने से पित्तज प्रमेह दूर हो जाता है।
Y 20-30 मिलीलीटर गिलोय और चित्रक का काढ़ा सुबह-शाम पीने से सर्पिप्रमेह मिटता है।
गिलोय के 10-20 मिलीलीटर रस में 2 चम्मच
शहद मिलाकर दिन में दो बार पीने से प्रमेह नष्ट हो जाता है।
Y 1 ग्राम गिलोय के रस में 3 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम
चाटने से प्रमेह के रोग में लाभ मिलता है।
B-वीर्य गाढ़ा
करना:
गिलोय का रस और अलसी वशंलोचन बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना
लें। इसमें से 2 ग्राम
की मात्रा में शहद के साथ एक हफ्ते तक सेवन करने से वीर्य
गाढ़ा होता है।
C-अंडकोष की खुजली:
गिलोय
के रस को गुग्गल के साथ या कड़वी नीम के साथ या हरिद्रा, खदिर और आंवले के काढ़े के साथ रोजाना 3 बार सेवन करने से अंडकोष की खुजली दूर हो जाती है।
D-नपुंसकता (नामर्दी):
गिलोय, बड़ा गोखरू और आंवला सभी बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें।
इसमें से 5 ग्राम
चूर्ण प्रतिदिन मिश्री और घी के साथ खाने से संभोग शक्ति में वृद्धि होती है।
E-कमजोरी:
100 ग्राम गिलोय का लई (कल्क), 100 ग्राम अनन्तमूल
का चूर्ण, दोनों को एक साथ 1 लीटर उबलते पानी में मिलाकर किसी बंद पत्ते में रख दें। 2 घंटे के बाद मसल-छान कर रख लें। इसे 50-100 ग्राम रोजाना 2-3 बार सेवन करने से बुखार से आयी कमजोरी मिट जाती है।
F-(एच.आई.वी.):
गुरुच
(गिलोय) का रस 7 से 10 मिलीलीटर, शहद या कड़वे नीम का रस अथवा दाल
चूर्ण या हरिद्रा, खदिर एवं आंवला एक साथ प्रतिदिन 3 बार खाने से एड्स में लाभ होता है। यह उभरते घाव, प्रमेह जनित मूत्रसंस्थान के रोग नाशक एवं जीर्ण पूति केन्द्र जनित विकार
नाशक में लाभदायक होता है।
पंचामृत का सेवन बढ़ाये रोग प्रतिरोधक क्षमता –
गिलोय-रस 10 से 20 मिलीग्राम, घृतकुमारी रस 10 से 20 मिलीग्राम,
गेहूं का ज्वारा 10 से 20 मिलीग्राम, तुलसी-7 पत्ते,
सुबह शाम खाली पेट सेवन करने से कैंसर से लेकर सभी असाध्य रोगों में
अत्यन्त लाभ होता है। यह पंचामृत शरीर की शुद्धि व रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए
अत्यन्त लाभकारी है।
शरीर को ताकतवर और शक्तिशाली बनाना :
लगभग 4 साल पुरानी गिलोय जो कि नीम या आम के पेड़ पर
अच्छी तरह से पक गई हो। अब इस गिलोय के 4-4 टुकड़े उंगली के
जितने कर लें। अब इसको जल में साफ करके कूट लें और फिर इसे स्टील के बर्तन में
लगभग 6 घंटे तक भिगोकर रख दें। इसके बाद इसे हाथ से खूब
मसलकर मिक्सी में डालकर पीसें और इसे छानकर इसका रस अलग कर लें और इसको धीरे से
दूसरे बर्तन में निथार दें और ऐसा करने से बर्तन में नीचे बारीक चूर्ण जम जाएगा
फिर इसमें दूसरा जल डालकर छोड़ दें। इसके बाद इस जल को भी ऊपर से निथार लें। ऐसा 2
या 3 बार करने से एक चमकदार सफेद रंग का बारीक
पिसा हुआ चूर्ण मिलेगा। इसको सुखाकर कांच बर्तन में भरकर रख लें। इसके बाद लगभग 10
ग्राम की मात्रा में गाय के ताजे दूध के साथ इसमें चीनी डालकर लगभग 1
या 2 ग्राम की मात्रा में गिलोय का रस डाल
दें। हल्का बुखार होने पर घी और चीनी के साथ या शहद और पीपल के साथ या गुड़ और काले
जीरे के साथ सेवन करने से शरीर में होने वाली विभिन्न प्रकार की बीमारियां ठीक हो
जाती हैं तथा शरीर में ताकत की वृद्धि होती है।
अन्य रोग में –
1.
कुष्ठ (कोढ़): 100
मिलीलीटर बिल्कुल साफ गिलोय का रस और 10 ग्राम
अनन्तमूल का चूर्ण 1 लीटर उबलते हुए पानी में मिलाकर किसी
बंद बर्तन में 2 घंटे के लिये रखकर छोड़ दें। 2 घंटे के बाद इसे बर्तन में से निकालकर मसलकर छान लें। इसमें से 50 से 100 ग्राम की मात्रा प्रतिदिन दिन में 3 बार सेवन करने से खून साफ होकर कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक हो जाता है।
2.
कफ व खांसी: गिलोय को शहद के साथ चाटने से कफ विकार दूर हो जाता है।
3.
जीभ और मुंख का सूखापन:- गिलोय (गुरुच) का रस 10 मिलीलीटर से 20
मिलीलीटर की मात्रा शहद के साथ मिलाकर खायें फिर जीरा तथा मिश्री का
शर्बत पीयें। इससे गले में जलन के कारण होने वाले मुंह का सूखापन दूर होता है।
4.
जीभ की प्रदाह और सूजन: गिलोय, पीपल, तथा रसौत का काढ़ा
बनाकर इससे गरारे करने से जीभ की जलन तथा सूजन दूर हो जाती है।
5.
मुंह के अन्दर के छालें (मुखपाक): धमासा, हरड़, जावित्री, दाख, गिलोय, बहेड़ा एवं आंवला
इन सब को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। ठण्डा होने पर इसमें शहद मिलाकर
पीने से मुखपाक दूर होते हैं।
6.
प्यास अधिक लगना: गिलोय का रस 6 से 10 मिलीलीटर की
मात्रा में दिन में कई बार लेने से प्यास शांत हो जाती है।
7.
स्तनों में दूध कम उतरना: गिलोय (गुरुच) को पकाकर काढ़ा बनाकर 1 दिन में 2 खुराक के रूप में बच्चे को जन्म देने वाली
मां (प्रसूता स्त्री) को पिलाने से स्तन की शुद्धि होती है और छोटे बच्चों को
स्वच्छ और पौष्टिक दूध मिलता है तथा स्तनों में दूध कम होने की शिकायत भी दूर हो
जाती है।
8.
स्त्री के स्तनों में दूध की शुद्धि: गिलोय या गुरुच को पकाकर काढ़ा बनाकर
बच्चे की माता को पिलाने से उसके स्तन में होने वाले दोष दूर हो जाते हैं।
9.
घाव (व्रण): 4 ग्राम से 6 ग्राम गिलोय
का काढ़ा प्रतिदिन पीने से घाव ठीक हो जाता है।
10.
उपदंश (फिरंग): गिलोय के काढ़े में 10-20 मिलीलीटर अरण्डी का तेल मिलाकर पीने से उपदंश
रोग में लाभ मिलता है। इसको खाने से खून साफ होता है और गठिया-रोग भी ठीक हो जाता
है।
11.
सूखा रोग में- गिलोय के
रस में रोगी बच्चे का कमीज रंगकर सुखा लें और यह कुर्त्ता सूखा रोग से पीड़ित बच्चे को पहनाकर रखें। इससे बच्चे का सूखा रोग जल्द ठीक होगा।
12.
फीलपांव (गजचर्म): गाय के पेशाब को गिलोय के रस के साथ पीने
से फीलपांव रोग ठीक हो जाता है।
13.
वातरक्त के दोष होना: गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करें।
वातरक्त दोष के कारण से जो त्वचा फटी हो उस पर इस तेल को लगाए इससे लाभ मिलेगा।
14.
सिर का दर्द: मलेरिया के कारण होने वाले सिर के दर्द को ठीक करने के लिए
गिलोय का काढ़ा सेवन करें।
15.
पसीने की बदबू में- सुबह शाम
गिलोय का दो तीन टेबल स्पून शर्बत को पानी में मिलाकर पीने से पसीने से आ रही बदबू
का आना बंद हो जाता है।
16. रक्त विकारों में- खाज, खुजली, वातरक्त, मुहांसे इत्यादि रोगों में गिलोय को शुद्ध गुग्गल के साथ देने से लाभ
होता है।
17. हिचकी में- यदि आपको हिचकियां आ रही है जो बंद होने का नाम नहीं ले रही हैं तो आप सोंठ
और गिलोय का चूर्ण सुंघाएं। हिचकी तुरंत दूर हो जाएगी।
18.
शरीर में गर्मी -शरीर में
गर्मी अधिक है तो इसे कूटकर रात को भिगो दें और सवेरे मसलकर शहद या मिश्री मिलाकर पी लें तो आपको कोई भी चर्मरोग नहीं होगा |
19.
सौंदर्यवर्धन के लिए- गिलोय के नित्य प्रयोग से शरीर में कान्ति
रहती है और असमय ही झुर्रियां नहीं पड़ती।
20. प्लेटलेट्स
की कमी हो जाने पर- अगर आपको डेंगू बुखार हुआ है और आपकी platelets
बहुत कम हो गई हैं, तो चिंता की कोई बात नहीं
है , एलोवेरा में गिलोय को मिलाकर इसका सेवन करने से एकदम platelets बढ़ते हैं।
21.
फटी त्वचा
के लिए- फटी त्वचा
के लिए गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करे और ठंडा करें। इस तेल को फटी त्वचा पर लगाए इससे वातरक्त दोष दूर होकर त्वचा कोमल और साफ
होती है।
22.
पागलपन में- गिलोय का
रस को नीम के पत्ते एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। गिलोय के इस काढ़े का
ब्राह्मी के साथ सेवन से दिल मजबूत होता है, इससे उन्माद
या पागलपन दूर हो जाता है, अथवा गिलोय
याददाश्त को भी बढाती है।
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